पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/४१

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एहि प्रकार वल मनहिं दिखाई ॐ करिहउँ रघुपति कथा सोहाई ॥ राम)
व्यास आदि कवि पुंगव' नाना ॐ जिन्ह सादर हरि सुजस बखाना ॥ 

इस प्रकार का बल मन को दिखाकर मैं रघुपति की सुहावनी कथा की रचना करूँगा। व्यास आदि जो अनेक श्रेष्ठ कवि हो गये हैं और जिन्होंने बड़े आदर से हरि का सुयश वर्णन किया है ।

चरन कमल बंदउँ तिन्ह केरे ॐ पुरवहु सकल मनोरथ मेरे ॥ राम
कलि के कविन्ह करउँ परनामा । ज़िन्ह वरने रघुपति गुन ग्रामा ॥

मैं उन सब कवियों के चरणकमलों को प्रणाम करता हूं। वे सब मेरे मनोराम रथ को पूरा करें । मैं कलियुग के भी उन कवियों को प्रणाम करता हूं, जिन्होंने ॐ रामचन्द्रजी के गुण-समूहों का वर्णन किया है। ।

जे प्राकृत कवि परम संयाने ॐ भाषा जिन्ह हरि चरित वखाने ॐ
भये जे अहहिं जे होइहहिं आगे । प्रनवउँ सबहिं कपट सब त्यागे ॥ ॐ 

जो अन्य बड़े बुद्धिमान संसारी कवि हैं, जिन्होंने भाषा में हरि-चरित वर्णन किये हैं, ऐसे कवि जो पहले हो चुके, जो वर्तमान हैं और जो आगे होंगे, ॐ उन सबको में सारा कपट छोड़कर प्रणाम करता हूँ।

होहु प्रसन्न देहु बरदानू ॐ साधु समाज भनिति सनमानू ॥
जो प्रबंध बुध नहिं आदरहीं ॐ सो स्रम वादि बाल कवि करहीं ॥

सव कवि मुझ पर प्रसन्न होकर वरदान दीजिये कि साधु-समाज में मेरी कविता का आदर हो; क्योंकि जिस काव्य का आदर पण्डित लोग नहीं करते, उसके रचने का व्यर्थ परिश्रम बाल (मूर्ख) कवि ही करते हैं ।

कीरति भनिति भूति' भलि सोई ॐ सुरसरि सम सव कहँ हित होई ॐ 
राम सुकीरति भनिति भदेसा ॐ असमंजस अस मोहिं अँदैसा ।
तुम्हरी कृपा सुलभ सोउ मोरे ॐ सिअनि सोहावनि टाट पटोरे ॥

कीर्ति, कविता और सम्पत्ति वही उत्तम है, जो गङ्गाजी के समान सब का हित करने वाली हो । रामचन्द्रजी की कीर्ति तो बड़ी सुन्दर है, पर मेरी कविता ॐ भद्दी है। मुझे इस बात की बड़ी चिन्ता और अंदेशा है। परन्तु हे सुकवियो !

ॐ १. श्रेष्ठ । २. पूरा करो । ३. संसारी । ४. ईं। ५. व्यर्थ । ६. सम्पत्ति, ऐश्वर्य । ७. रेशम ।