पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/४१३

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ॐ ४१२ ३ ४ इब्न । है परउँ कूप तुअ बचन पर सकउँ पूत पति त्यागि। ए ! कहासि मोर दुखु देखि बड़ कस नकरब हित लागि। एम् | कैकेयी ने कहा-मैं तेरे कहने पर कुएँ में भी गिर सकती हैं, पति और पुत्र को भी त्याग सकती हैं। अरी ! जब तू मेरा बड़ा भारी दुःख देखकर कहती है, हो तो भला, मैं अपने हित के लिये उसे क्यों न करूंगी ? कुबरी करी कुबलि कैकेई $ कपट छुरी उर पाहन टेई राम लखइ न राति निकट दुखु कैसे $ चरइ हरित तिन' बलि पसु जैसे राम कुबरी ने कैकेयी को कुबलि का पशु बनाकर अपनी कपटरूपी छुरी को राम) हृदयरूपी पत्थर पर टेया (धार को तेज़ किया ) । रानी कैकेयी अपने पास के दुख रामा ॐ को ऐसे नहीं देखती, जैसे बलिदान दिया जाने वाला पशु हरी-हरी घास चरता राम है (वह अपने निकट मरण को नहीं जानता)। (कुबलि इसलिये कहा कि मादा । पशु को बलि नहीं दी जाती )। राम सुनत बात मृदु अंत कठोरी ॐ देति मनहुँ मधु माहुर घोरी है कहइ चेरि सुधि अहइ कि नाहीं ॐ स्वामिनि कहिहु कथा मोहि पाहीं | मन्थरा की बातें सुनने में तो कोमल हैं, पर परिणाम में कठोर हैं। मानो * वह शहद में घोलकर विष पिलार ही है। दासी मन्थरा कहती है—हे मालकिन ! तुमने जो कथा मुझसे कही थी, उसकी याद है कि नहीं ? दुइ वरदान भूप सन थाती ॐ माँगहु आजु जुड़ावहु छाती ॐ सुतहि राजु रामहि बनवासू ॐ देहु लेहु सब सवति हुलासू है राम . तुम्हारे दो वरदान राजा के पास धरोहर हैं। आज उन्हें माँगकर छाती छै ठण्डी कर लो। पुत्र को राज्य और राम को वनवास दो और सौत का सारा आनन्द तुम ले लो। भूपति राम सपथ जब करई ॐ तव माँगेहु जेहिं बचनु न टरई होइ अकाजु आजु निसि बीते ६ वचनु मोर प्रिय मानेहु जी ते : जब राजा रामचन्द्र की सौगन्ध खा लें, तब वर माँगना, जिससे वे अपने । वचन को टाल न सकें। आज की रात बीत गई, तो काम बिगड़ जायगा । मेरे वचन को जी-जान से प्यारा समझना। | ले लो। १. तृण, घास ।