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ॐ ४० रामचरित मानस ॐ जहाज के समान हैं और जिन्हें रामचन्द्रजी को निर्मल यश वर्णन करने में स्वप्न में भी खेद (थकान) नहीं होता।
बंदउँ विधि पद रेनु' भवसागर जेहि कीन्ह जहँ । संत सुधा ससि धेनु प्रगटे खल बिष बारुनी ॥१४(६)॥ राम
मैं ब्रह्मा की धूलि की वन्दना करता हूँ जिन्होंने यह भवसागर बनाया है। जिसमें एक ओर अमृत, चन्द्रमा, और कामधेनुरूपी सज्जन तथा दूसरी ओर विष और मदिरारूपी दुष्टजन उत्पन्न हुये हैं।
ॐ. बिबुध बिप्र बुध ग्रह चरन बंदि कहउँ कर जोरि। होइ प्रसन्न पुरवहु सकल मंजु मनोरथ मोरि ।।१४(७)।।
देवता, ब्राह्मण, पण्डित, ग्रह, इन सबके चरणों की वन्दना करके मैं हाथ जोड़कर कहता हूँ कि मुझ पर प्रसन्न होकर सब मेरे सुन्दरं मनोरथ को पूरा करें।
पुनि बंदउँ सारद सुरसरिता ॐ जुगल पुनीत मनोहर चरिता । मज्जन पान पाप हर एका ॐ कहत सुनत एक हर अबिवेका ।।
फिर मैं सरस्वती और गंगाजी की वन्दना करता हूँ। दोनों पवित्र और मनोहर चरित्रवाली हैं। एक स्नान करने और जल पीने से पापों को हरती है ॐ और दूसरी गुण और यश के कहने-सुनने से अज्ञान को हर लेती है।
गुर पितु मातु महेस भवानी ॐ प्रनवउँ दीनबंधु दिन दानी ॥ सेवक स्वामि सखा सिय पी के । हित निरुपधि सब बिधि तुलसी के ॥
मेरे गुरु, माता और पिता शिव और भवानी हैं। वे दीनबन्धु और नित्य ॐ दान देने वाले हैं। मैं उनको प्रणाम करता हूँ। वे सीतापति श्रीरामचन्द्रजी के सेवक, स्वामी और मुझ तुलसीदास के तो सब प्रकार कपट-रहित सच्चे हितकारी हैं|
कलि विलोकि जग हित हर गिरिजा ॐ साबर मंत्र जाल जिन्ह सिरिजा ॥ रामा अनमिल आखर अरथ न जापू ॐ प्रगट प्रभाउ महेस प्रतापू ॥
जिन शिव-पार्वती ने कलियुग को देखकर, जगत् के हित के लिये, साबर-ॐ
१. धूलि, रज ! राम -राम -राम -राम -एम -एम -राम-राम-राम -राम -राम -राम)