पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/४६

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भाइयों में सबसे पहले मैं भरतजी के चरणों को प्रणाम करता हूँ, जिनका नियम और व्रत वर्णन नहीं किया जा सकता, और जिनका मन रामचन्द्रजी के ॐ चरणरूपी कमलों में भौरे के समान लुभाया हुआ पास से नहीं हटता । राम)

बंदउँ लछिमन पद जलजाता ॐ सीतल सुभग भगत सुखदाता ॥ राम । 
रघुपति कीरति विमल पताका । दंड समान भयेउ जस जाका ॥  

मैं लक्ष्मणजी के चरणकमलों की वन्दना करता हूँ, जो परम शीतल, सुन्दर ॐ और भक्तों को सुख देने वाले हैं और रामचन्द्रजी की कीर्तिरूपी विमल पताका में जिनका यश पताका को फहराने वाली लकड़ी या दंड के समान हुआ ।

सेष सहस्रसीस जग कारन ॐ जो अवतरेउ भूमि भय टारन ॥ 
सदा सो सानुकूल रह मोपर । कृपासिंधु सौमित्रि गुनाकर ॥ 

जो जगत् के कारण और हज़ार सिर वाले शेषजी हैं और जिन्होंने पृथ्वी का भय दूर करने के लिये अवतार लिया, वे कृपा-सागर, गुणों की खान, सुमित्रा के पुत्र लक्ष्मणजी सदा मुझ पर प्रसन्न रहें ।

रिपुसूदन पदकमल नमामी ॐ सूर सुशील भरत अनुगामी ॥
महावीर बिनवउँ हनुमाना । राम जासु जस आपु वखाना ॥

मैं शत्रुध्नजी के चरण-कमलों को प्रणाम करता हूँ, जो शूर, सुशील और भरत के पीछे चलने वाले हैं। मैं महावीर हनुमानजी की विनती करता हूं, जिन राम के यश का वर्णन रामचन्द्रजी ने श्रीमुख से स्वयं किया है ।।

प्रनवउँ पवनकुमार खल बल पावक ग्यानघन । 
जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर ॥१७॥ (राम) 

मैं पवनकुमार हनुमानजी को प्रणाम करता हूँ, जो दुष्टरूपी बन के भस्म ॐ करने के लिये अग्नि रूप और ज्ञान के मेघरूप हैं; और जिनके हृदयरूरी भवन राम में धनुष-बाण धारण किये हुये श्रीरामचन्द्रजी निवास करते हैं।

कपिपति रीछ निसाचर राजा ॐ अंगदादि जे कीस समाजा ॥ 
बंदउँ सबके चरन सोहाए ॐ अधम सरीर राम जिन्ह पाए ॥ ॐ 

बानरों के राजा सुग्रीव, रीछों के राजा जाम्बवान, राक्षसों के राजा विभीषण

१. जिसका। २. अग्नि । ३. भालू ।।