पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/४९

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ॐ ४६

बरषा रितु रघुपति भगति तुलसी सालि' सुदास।
राम नाम बर बरन' युग सावन भादव मास ॥१९॥

रामचन्द्रजी की भक्ति वर्षा-ऋतु है। तुलसीदास कहते हैं कि सुन्दर भक्तजन धान हैं, राम नाम के दोनों सुन्दर अक्षर सावन और भादों के महीने हैं ।[ परंपरित रूपक अलंकार ]

आखर मधुर मनोहर दोऊ ॐ वरन बिलोचन जन जिय जोउ ॥ राम
सुमिरत सुलभ सुखद सब काहू ॐ लोक लाहु परलोक निवाहू ॐ 

दोनों अक्षर मधुर और मनोहर हैं। ये वर्णमाला के नेत्र भक्तों के प्राण हैं। राम्। ये स्मरण करने में सबके लिये सुलभ और सुख देने वाले हैं। इन से इस लोक राम में लाभ और परलोक में निर्वाह होता है, अर्थात् मुक्ति मिलती है ॥

कहत सुनत सुमिरत सुठि नीके ॐ राम लखन सम प्रिय तुलसी के ॥
वरनत बरन प्रीति विलगाती ॐ ब्रह्म जीव सम सहज सँघाती ॥

दोनों अक्षर, कहने, सुनने और स्मरण करने में बहुत ही सुहावने लगते है । तुलसीदास को तो ये दोनों अक्षर राम-लक्ष्मण के समान प्यारे हैं। र और म का अलग अलग वर्णन करने में प्रीति में अन्तर आता है। बारतव में ये दोनों राम) अक्षर ब्रह्म और जीव के समान स्वाभाविक साथी हैं ॥

नर नारायन सरिस सुभ्राता । जग पालक विसेषि जन त्राता ॥
भगति सुतिअ कल करन विभूषन ॐ जग हित हेतु विमल बिधु पूषन ॥

ये दोनों अक्षर नर-नारायण के समान सुन्दर भाई हैं। ये जगत् के पालक और विशेषकर भक्तों के रखवाले हैं। ये दोनों अक्षर भक्ति-रूपिणी सुन्दर स्त्री के कानों के सुन्दर कर्णफूल हैं। संसार के हित के लिये ये दोनों अक्षर निर्मल चन्द्रमा और सूर्य हैं।

स्वाद तोष' सम सुगति सुधा के ॐ कमठ सेष सम धर वसुधा के ॥
जन मन मंजु कंज मधुकर से । जीह जसोमति हरि हलधर से ॥

ये मुक्तिरूपी अमृत के स्वाद और तृप्ति के समान हैं । पृथ्वी के धारण करने के लिये ये कच्छप और शेषजी के समान हैं। भक्तों के मनरूपी सुन्दर ॐ

१. धान । २. वर्ण, अक्षर । ३. सुन्दर । ४. संगी, साथी ! ५, सुन्दर स्त्री । ६. तृप्ति ।