पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/५०

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कमल के लिये ये भौंरे के समान हैं, और जिह्वारूपी यशोदा के लिये ये श्रीकृष्ण ॐ और बलराम जी के समान हैं। [ मालोपमा अलंकार ]

एक छत्रु एकु मुकुटमनि सब बरननि पर जोउ।। 
तुलसी रघुबर नाम के बरन बिराजत दोउ ॥२०॥  

तुलसीदास जी कहते हैं— श्री रामचन्द्र जी के नाम के दोनों अक्षर में से ॐ एक (रेफ- र् ) छत्र के समान और दूसरा (मकार ं ) मुकुट की मणि के समान (राम) सब अक्षरों के ऊपर बिराजता है। [ काव्यालिंग अलंकार ]

समुझत सरिस नाम अरु नामी ॐ प्रीति परसपर प्रभु अनुगामी ॥
नाम रूप दुइ ईस उपाधी । अकथ अनादि सुसामुझि साधी' ॥

समझने में नाम और नामी ( रामनाम और रामचन्द्र ) दोनों समान हैं। दोनों में प्रीति है और दोनों स्वामी और सेवक हैं। नाम और रूप ये दोनों ईश्वर की उपाधियाँ हैं। ये दोनों अकथनीय और अनादि हैं और सुन्दर बुद्धि से जाने जाते हैं।

को बड़ छोट कहत अपराधू ॐ सुनि गुन भेदु समुझिहहिं साधू ॥
देखिअहिं रूप नाम आधीना । रूप ग्यान नहिं नाम विहीना ॥ राम 

इन में कौन बड़ा है, कौन छोटा है ? यह कहना अपराध है। इनके गुणों के भेद को सुनकर साधु पुरुष स्वयं ही समझ लेंगे। रूप नाम के अधीन देखा जाता है । नाम के बिना रूप का ज्ञान हो नहीं सकता।

रुप बिसेष नाम विनु जाने ॐ करतल' गत न परहिं पहिचाने ॐ 
सुमिरिअ नामु रूप बिनु देखे । आवत हृदय सनेह विसेखे ।  

रूप कैसा ही हो, बिना उसका नाम जाने हाथ पर रक्खा हुआ भी वह पहचाना नहीं जा सकता । रूप के बिना देखे भी नाम को स्मरण करने से वह रूप विशेष प्रेम के साथ हृदय में आजाता है। ।

नाम रूप गति अकथ कहानी । समुझत सुखद न परति वखानी ॥
अगुन सगुन बिच नाम सुसाखी । उभय प्रबोधक चतुर दुभाखी' ॐ 

नाम और रूप की गति की कथा अकथनीय है। वह समझने में आनन्दॐ

१. साध्य, जानने योग्य । २. हथेली । ३. दो भाषाओं का जानने वाला ।