पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/५३

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ॐ ५०

अस प्रभु हृदय अछत अविकारी । सकल जीव जग दीन दुखारी ॥ है राम 
नाम निरूपन नाम जतन ते । सोउ प्रगटत जिमि मोल रतन तें ॥ 

हृदय में ऐसे शुद्ध और निर्विकार प्रभु के रहते हुए भी जगत् के सब जीव, दीन और दुखी हैं। नाम का निरूपण करके नाम का यत्न (जप) करने से वही ब्रह्म ऐसे प्रकट हो जाता है, जैसे रत्न के जानने से उसका मूल्य । [ उदाहरण अलङ्कार ] ॐ

निरगुन ते एहि भाँति बड़ नाम प्रभाउ अपार।।
कहउँ नामु बड़ राम ते निज विचार अनुसार ॥२३॥ 

इस प्रकार निर्गुण से नाम का प्रभाव बहुत ही बड़ा है । अब अपने विचार ॐ के अनुसार कहता हूँ कि नाम राम से भी बड़ा है ।।

राम भगत हित नर तनु धारी ॐ सहि संकट किय साधु सुखारी ॥
नामु सप्रेम जपत अनयासा ॐ भगत होहिं मुद मंगल वासा ॥ 

रामचन्द्र जी ने भक्तों के हित के लिये मनुष्य-शरीर धारण करके और स्वयं संकट सहकर साधुओं को सुखी किया। किन्तु प्रेम से नाम का जप करने से भक्त सहज ही में आनन्द और कल्याण के घर हो जाते हैं।

राम एक तापस तिय तारी ॐ नास कोटि खल कुमति सुधारी ॥हैं राम 
रिषि हित राम सुकेतु सुता की । सहित सेन सुत कीन्हि विवाकी ॥ राम

राम ने एक तपस्वी की पत्नी अहिल्या को उद्धार किया, परन्तु नाम ने करोड़ों दुष्टों की बुद्धि को सुधार दिया। राम ने विश्वामित्र ऋषि के हित के ॐ लिये सुकेतु की कन्या ताड़का को, उसकी सेना और पुत्र सुबाहु सहित, निःशेष (विध्वंस) कर दिया ।

सहित दोष दुख दास दुरासा ॐ दलइ नाम जिमि रबि निसि नासा ॥ 
भंजेउ राम आपु भव चापू ॐ भव भय भंजन नाम प्रतापू ॥

परन्तु नाम भक्तों के दोष, दुःख और दुराशाओं का ऐसे संहार करता है, जैसे सूर्य रात्रि का नाश करता है। राम ने स्वयं भव (शिव) का धनुष तोड़ा; परन्तु नाम का प्रताप भव (संसार) के सब भयों का नाश कर देने वाला है।