पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/५६

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बालकाण्ड  

हो गये। मैं नाम की बड़ाई कहाँ तक कहूँ । राम भी नाम के गुणों को नहीं गा सकते ।

नामु राम को कलपतरू कलि कल्यान निवासु ।
जो सुमिरत भयौ भाँग१ ते तुलसी२ तुलसीदासु ।२६।

राम का नाम कलियुग में कल्पतरु (मन चाहा पदार्थ देने वाला) और ॐ कल्याण का घर है, जिसको स्मरण करके भाँग ऐसा निकृष्ट तुलसीदास तुलसी के समान (पवित्र) हो गया।

चहुँ जुग तीनि काल तिहुँ लोका । भये नाम जपि जीव विसोका ।। 
बेद पुरान संत मत एहू । सकल सुकृत फल राम सनेहू ॥

चारों युगों में, तीनों कालों में और तीनों लोकों में नाम को जपकर जीव शोक रहित हुये हैं। वेद, पुराण और सन्तों का मत यही है कि सारे पुण्यों का फल रामचन्द्र जी में प्रेम का होना है।

ध्यानु प्रथम जुग मख विधि दूजे । द्वापर परितोषत प्रभु पूजे ॥  
कलि केवल मल मूल मलीना । पाप पयोनिधि जन मन मीना ॥ 

प्रथम (सत्य) युग में ध्यान से, दूसरे (त्रेता) में यज्ञ से, द्वापर में पूजन से भगवान् प्रसन्न होते हैं, परन्तु कलियुग केवल पाप की जड़ और मलिन है। मनुष्यों का मन पाप के समुद्र में मछली के समान रहता है।

नाम कामतरु काल कराला । सुमिरत समन सकल जग जाला ।।
राम नाम कलि अभिमत दाता । हित परलोक लोक पितु माता ॥

इस कराल काल में नाम ही कल्पवृक्ष है, जो स्मरण करते ही संसार के सब बन्धनों का नाश कर देता है। राम का नाम कलियुग में मनोवाँछित फल देने वाला है। यह परलोक में हित करता है और इस लोक में माता-पिता के समान (रक्षक और पालक) है।

नहिं कलि करम न भगति विवेकू । राम नाम अवलंबन३ एकू ॥
कालनेमि कलि कपट निधानू । नाम सुमति समरथ हनुमानू ॥

कलियुग में न कर्म है, और न भक्ति और ज्ञान ही है। केवल रामनाम ही

१. नशीला पौधा। २. पौधा, जिसकी पत्तियाँ पूजन में मूर्ति पर चढ़ाई जाती हैं। ३. प्राधार, सहारा ।