पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/५७

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५४ एक आधार है। कपट की खान कलियुगरूपी कालनेमि ( दैत्य ) के (मारने के) लिये राम का नाम ही बुद्धिमान और समर्थ हनुमान के समान है।

रामनाम नरकेसरी कनककसिषु कलिकालु ।।
जापक१ जन प्रहलाद जिमि पालिहि दलि सुरसालु ॥२७॥ 

राम का नाम नृसिंह है, कलियुग हिरण्यकशिपु है, और जप करने वाले भक्तजन प्रह्लाद हैं। नामरूपी नृसिंह भगवान् देवताओं को दुःख देने वाले हिरण्यकशिपु को मारकर जप करनेवाले प्रह्लाद की रक्षा करेंगे।

भायँ कुभायँ अनख२ आलसहूँ । नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ ॥ 
सुमिरि सो नाम राम गुन गाथा । करउँ नाइ रघुनाथहिं माथा ॥

प्रेम से, बैर से, क्रोध से या आलस्य से किसी तरह से भी नाम जपने से दशों दिशाओं में कल्याण होता है। उसी रामनाम का स्मरण करके और रामचन्द्रजी को मस्तक नवाकर मैं राम के चरणों की कथा रचता हूँ। ॐ

मोरि सुधारिहि सो सव भाँती । जासु कृपा नहिं कृपा अघाती ॥ 
राम सुस्वामि कुसेवकु मो सो । निजि दिसि देखि दयानिधि पोसो३ ॥

वे श्रीरामजी सब तरह से मेरी बिगड़ी सुधारेंगे । जिनकी कृपा से कृपा राम तृप्त नहीं होती अर्थात् कृपा करने से नहीं अघाती । राम से उत्तम स्वामी और राम है मुझ-सा बुरा सेवक ! इसपर अपनी ओर देखकर उन दयानिधान ने मेरा पालन राम किया है।

लोकहुँ वेद सुसाहिब रीती । विनय सुनत पहिचानत प्रीती ॥ 
गनी गरीब ग्राम-नर नागर । पंडित मूढ़ मलीन उजागर ॥

लोक और वेद में भी अच्छे स्वामी की यही रीति प्रसिद्ध है कि वह विनय ॐ सुनते ही प्रार्थी की प्रीति को पहचान लेते हैं। धनी, निर्धन, गॅवार, नगर-निवासी, पण्डित, मूर्ख, बदनाम, और विख्यात---

सुकवि कुकवि निज मति अनुहारी । नृपहि सराहत सब नर नारी ॥ 
साधु सुजान सुसील नृपाला । ईस अंस भव परम कृपाला ॥

कवि और कुकवि सब स्त्री-पुरुष अपनी-अपनी बुद्धि के अनुसार राजा की

१. जप करने वाला। २. क्रोध । ३. पालन किया । ४. धनी । ५. आँवार । ६. अनुसार।t