पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/६२

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| 4: , - - ५६ है। ॐ रूपी साँप के लिये मोरनी है, और फिर ज्ञानरूपी अग्नि को प्रज्वलित करने के होम, लिये अरनी (मंथन की जाने वाली) लकड़ी है। ॐ रामकथा कलि कामद गाई' ॐ सुजन सजीवन मूरि सोहाई फू सोइ बसुधातल सुधा तर गिनि ॐ भय भञ्जलि भ्रम भेक भुगिनि राम-कथा कलियुग में सब मनोरर्थों को पूरा करने वाली कामधेनु (ग) और सज्जनों के लिये सुन्दर सञ्जीवनी जड़ी है। पृथ्वी पर यही अमृत की नदी है। यह भय को दूर करने वाली और सन्देहरूपी मेंढकों को खाने के लिये सर्पिणी है। ॐ असुर सेन सम नरक निकंदिति ॐ साधु विबुध कुल हित गिरिनंदिनि । एम) संत समाज पयोधि रमा सी ॐ बिस्व भार भर अचल छमा सी यह राम-कथा. राक्षसों की सेना के समान जो नरक हैं उनको नाश करने रामो वाली है और साधु और देवकुल का कल्याण चाहने वाली गैगा तथा पार्वती दुग है। यह सन्त-समाज रूपी क्षीरसागर के लिये लक्ष्मी है और सम्पूर्ण विश्व में (राम) का भार उठाने में अचले पृथ्वी के समान है। । जस गन मुंह मसिजग जमुना सी के जीवन सुकुति हेतु जनु वासी हैं। । रामहिं श्रिय पवन तुलसी सी ॐ तुलसिदास हित हिय हुलसी सी यमदूतों के मुख पर कालिख लगाने के लिये यह संसार में यमुना के * समान है। जीव को मुक्ति देने के लिये तो मानो साक्षात् काशी है । रामचन्द्रजी को पवित्र तुलसी के समान प्रिय है। तुलसीदास के लिये हुलसी (तुलसीदासजी * की माता) के समान जी से हित करने वाली है। (राम) सिव प्रिय मैकल सैल” सुता सी ॐ सकल सिद्धि सुख संपति रासी ॐ सदगुन सुरगन अंब अदिति सी की रघुवर भगति प्रेम परिमिति सी हो सुम यह रामकथा शिवजी को नर्मदा के समान प्यारी है। यह सब सिद्धियों, । सुख और सम्पत्ति की राशि है। सद्गुणरूपी देवताओं के लिये यह माता राम) अदिति के समान है; और रामचन्द्रजी की भक्ति और प्रेम की सीमा-सी है। म) र रामकथा मंदाकिली चित्रकूट चित चारू । तुलसी सुसग सनेह बन सिय रघुवीर विहारु ॥३१॥ १. गाय । २. स्याही । ३. विन्ध्याचल पर्वत । ४. सुन्दर ।