पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/६४

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कठिनता से मिटने वाले बुरे लेखों (मंद प्रारब्ध) को मिटा देने वाले हैं। अज्ञानहोम रूपी अन्धकार के दूर करने को सूर्य की किरणों के समान और सेवकरूपी धानों ने ॐ को पालने वाले मेघ के समान हैं। राम अभिमत दानि देवतरु वर से ॐ सेवत सुलभ सुखद हरिहर से सुकवि सरद भ मन उडगन से ॐ राम भगत जन जीवन धन से मनोवाञ्छित फल देने में श्रेष्ठ कल्पवृक्ष के समान हैं। और सेवा करने में हरिहर के समान सहज सुरव देने वाले हैं। सुकविरूपी शरद् ऋतु के मनरूपी । । आकाश से तारागण के समान हैं और राम के भक्तों के तो ये जीवनधन । (सर्वस्त्र) ही हैं। सकल सुकृत फल भूरि भोग से ॐ जग हित निरुपधि साधु लोग से सेवक मन मानस मराल से ॐ पावन गंग तरंग माल से सम्पूर्ण पुण्यों के फल-स्वरूप महान् सुख-भोग के समान हैं। निःस्वार्थ राम भाव से छल-रहित जगत का हित करने के लिये साधु-सन्तों के समान हैं। भक्तों के मनरूपी मानसरोवर से हंस के समान और पवित्र करने में गंगा की * एम) तरंग-माला के समान हैं। कुफ्थ ऊतक कुचाल झलि ट स पाखंड ।। दहल राम गुन ग्राम जिसि ईंधनअनल प्रचंड॥३२॥४९) । | रामचन्द्र के गुणों के समूह कुमार्ग, कुतर्क, कुचाल, कलि, कपट, दम्भ और पाखण्ड के लिये वैसे ही हैं, जैसे ईंधन के लिये प्रचंड अग्नि । रामचरित केस' रिस सुखद सब झाडु । | सज्जन कुमुद चोर चित्र हित बिषे वड़ ला ॥३२॥२) । रामचन्द्रजी का चरित पूर्णिमा के चन्द्रमा की किरणों के समान सभी को मे सुख देने वाला है। परन्तु सज्जनरूपी कुमुद और चकोरों के चित्त को विशेप हितकारी और बहुत लाभदायक है। राम कीन्हि प्रस्न जेहि भाँति भवानी छ जेहि विधि संकर कहा बखानी तुम । सो सब हेतु कहब मैं गाई $ था प्रबंध विचित्र वनाई १. पूर्णिमा का चन्द्रमा ।।