पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/६६

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ॐ सादर सिबहिं नाइ अव माथा ) बरनउँ विसद राम गुन गाथा राम संवत सोरह सै इकतीसा ॐ करउँ कथा हरिपद धरि सीसा अब मैं शिवजी को आदरसहित सिर नुवाकर रामचन्द्रजी के गुणों की हो एम) विमल कथा कहता हूँ । श्रीहरि के चरणों पर सिर रखकर संवत् १६३१ में मैं इस रान) । कथा का आरम्भ करता हूँ। राम नौमी भौमवार मधुमासा' ॐ अवधपुरी यह चरित प्रकासा । जेहि दिन राम जनम श्रुति गावहिं ) तीरथ सकल तहाँ चलि आवहिं। चैत्रमास की नवमी तिथि मंगलवार को यह चरित अयोध्या जी में प्रकाशित हुआ । जिस दिन रामचन्द्रजी का जन्म होता है, उस दिन वेद कहते हैं कि सारे तीर्थ वहाँ ( अयोध्याजी में ) चले आते हैं। असुर नाग खग नर मुनि देवा ॐ आई कहिं रघुनायक सेवा जनम महोत्सव रचहिं सुजाना के करहिं राम कल' कीरति गाना उस दिन असुर, नाग, पक्षी, मनुष्य, मुनि और देवता सब अयोध्याजी में मी है आकर रघुनाथजी की सेवा करते हैं। बुद्धिमान् लोग उस दिन जन्म का महो त्सव मनाते हैं, और रामचन्द्रजी की सुन्दर कीर्ति का गान करते हैं। है - मज्जहिं सन बुल्द बहु पावन सरजू लीर। ॐ जपहिं राम र ध्यान उर सुन्दर स्यूस सरीर ।३४।। राम) सज्जनों के बहुत से समूह रामनवमी के दिन सरयू के पवित्र जल में स्नान राम * करते हैं और सुन्दर श्यामशरीर रामचन्द्र जी का हृदय में ध्यान करके उनके राम नाम का जप करते हैं। . .... . । दरस परस सज्जन अरु पानाः ॐ हरइ पाप कह वेद पुराना है सुमो नदी पुनीत अमित सहिमा अति ॐ कहि न सकइ सारदा विमल मति गुम् । वेद और पुराण कहते हैं कि सरयू का दर्शन, स्पर्श, स्नान और जल-पान ए पापों को हरता है । यह नदी बड़ी ही पवित्र है। इसकी महिमा अनन्त है, जिसे । विमल बुद्धिवाली सरस्वती भी नहीं कह सकती। । राम धामदा . पुरी सुहावन ॐ लोक समस्त विदित अति पावति । । चारि खानि जग जीव अपारा ॐ अवध तजे तनु नहिं संसारा । १. चैत्रमास । ३. सुन्दर ।।