पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/६८

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• - छ - जस मानस जेहि बिधि भयेउ जग प्रचार जेहि हेतु। अब सोइ कहाँ प्रसंग सब सुसिरि उमा बृषकेतु ॥३५॥ ए यह रामचरितमानस जैसा है, जिस प्रकार बना है और जिस कारण से जगत् में इसका प्रचार हुआ, वही सब कथा मैं शिवजी और पार्वतीजी को स्मरण होम करके कहता हूँ। संभु प्रसाद सुमति हिअँ हुलसी ॐ रामचरितमानस कवि तुलसी करइ मनोहर मति अनुहारी * सुजन सुचित सुनि लेहु सुधारी। | शिवजी की कृपा से मेरे हृदय में सुन्दर बुद्धि का विकास हुआ जिससे ए) यह तुलसीदास इस रामचरितमानस का कवि हुआ। अपनी बुद्धि के अनुसार एम | तो वह इसे मनोहर ही बनाता है, पर फिर भी हे सज्जनो ! उसे सावधानी से है ए सुनकर सुधार लीजिये । सुमति भूमि थल हृदय अगाधू के बेद पुरान उदधि घन साधू हैं बरषहिं राम सुजस बर बारी ॐ मधुर मनोहर मंगलकारी हैं। सुन्दर (साविकी) बुद्धि धरती है, हृदय उसमें गहरा स्थान है, बेद-पुराण समुद्र हैं और साधु-सन्त मेघ हैं। वे मेघ रामचन्द्रजी के सुयशरूपी सुन्दर, * राम) मधुर, मनोहर और कल्याणकारी जल की वर्षा करते हैं। ॐ लीला सगुन जो कहहिं बखानी $ सोइ स्वच्छता करइ मल हानी हैं गुम प्रेम भगति जो बरनि न जाई ॐ सोइ मधुरता सुसीतलताई • सगुण लीला का जो विस्तार से वर्णन करते हैं, वही जल की निर्मलता है, जो मल को नाश करने वाली है। और जिस प्रेमभक्ति का वर्णन नहीं किया * जा सकता, वही जल की मिठास और सुन्दर शीतलता है। सो जल सुकृत सालि हित होई ॐ राम भगत जन जीवन सोई मेधा महिगत सो जल पावन ॐ सकिलि श्रवन मग चलेउ सुहावन भरेउ सुमानस सुथल थिराना ॐ सुखद सीत रुचि चारु चिराना । वही जल सत्कर्मरूपी धान के लिये हितकारी है और रामचन्द्रजी के ॐ भक्तों का तो जीवनाधार ही है। वह पवित्र जल बुद्धिरूपी पृथ्वी पर गिरा और १. शिव ।।