पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/७०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

६७

सत्कर्मों ( पुण्य ) के समूह ही सुन्दर भौरों के झुण्ड हैं। ज्ञान, वैराग्य और विचार हंस हैं। कविता की ध्वनि, वक्रोक्ति, गुण और जाति ही अनेकों प्रकार की मनोहर मछलियाँ हैं। राम

अरथ धरम कामादिक चारी । कहव ग्यान विग्यान विचारी ॥

नव रस जप तप जोग बिरागा ॐ ते सब जलचर चारु तड़ागा॥

धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ये चारों और ज्ञान, विज्ञान का विचार-पूर्वक ॐ कहना काव्य के नवरस; जप, तप, योग और वैराग्य के प्रसंग ये सब इस सुन्दर सरोवर के जलचर जीव हैं । राम

सुकृति साधु नाम गुन गाना । ते विचित्र जल-विहँग समाना ॥

संत सभा चहुँ दिसि अँबराई ॐ श्रद्धा रितु वसंत सम गाई ॥

पुण्यात्मा और साधुजनों और राम-नाम के गुणों का गान ही जले में । विहार करने वाले विचित्र पक्षी हैं । सन्तों की सभा ही सरोवर के चारों ओर एम् लगी हुई अमराई ( आम की बाटिकायें ) हैं और श्रद्धा वसन्त-ऋतु के समान कही गई है। भगति निरूपन विविध विधाना $ छमा दया दम लता विताना राम) सम. जम नियम फूल फल क्याना ॐ हरि पद रति रस वेद वखाना है औरउ कथा अनेक प्रसंगा ॐ तैइ सुक पिक बहु वरन विहंगा । राम : अनेक प्रकार से भक्ति का निरूपण, क्षमा, दया और इन्द्रिय-निग्रह ये राम । लता-मंडप हैं। समदर्शिता यम ( अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरि. मी ग्रह ) और नियम ( शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर-प्रणिधान ) ही उनके धू फुल हैं, ज्ञान फल है । और भगवान के चरणों में प्रेम ही रस है, ऐसी वेद कहते : हैं। इस ( रामचरितमानस ) में और भी जो अन्य कथायें और प्रसंग हैं, वे ही इसमें तोते और कोकिल आदि रंग-बिरंग के पक्षी हैं। ॐ पुलक बाटिका बाग बल सुख सुविहंग विहारु ।। राम माली सुमन सनेह जल सींचत लौचन चारः ॥३७॥ ऐसे कथा के सुनने से जो रोमाञ्च हो आता है, वही बाटिका, बाग और बन १. तालाव।