पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/७४

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| यह सरयू नदी, जिसका मूल मानस अर्थात् रामचरित है ( राम-भक्ति* रूपी ) गङ्गाजी में जा मिली । सुनने वाले सज्जनों के मन को यह कथा) पवित्र से कर देती है। बीच-बीच में जो भिन्न-भिन्न प्रकार को अद्भुत कथाये हैं, वे ही हैं। म) मानों नदी-किनारे के बन और बाग हैं। ॐ उमा महेस विबाह वराती % ते जलचर अगनित वहु भाँती एस रघुबर जस अनंद बधाई ॐ अँवर तरंग मनोहरताई | शिव-पार्वती के विवाह के बराती इस नदी में भाँति-भाँति के असंख्य जल चर जीव हैं । रामचन्द्रजी के जन्म की आनन्द बधाई ही इस नदी के भंवर और | लहरों की मनोहरता है ।। १ बालचरित चहुँ बंधु के बलज' विपुल वहुरंग । ' रामा -वृष राली परिजन सुकृत मधुर वारि विहंब ४० । चारों भाइयों के जो बाल-चरित हैं, वे ही इसमें रंग-बिरंग के वहुत-से | कमल हैं। राजा दशरथ, उनकी रानियों और अन्यान्य कुटुम्बी लोगों के सत्कर्म एम ही भ्रमर और जल-पक्षी हैं। सीय स्वयंवर कथा सुहाई ॐ सरित सुहावनि सो छवि छाई एमा ॐ नदी नाव पटु प्रस्न अनेक ॐ केवट कुसल उतर सविवेका इसमें सीताजी के स्वयंवर की जो सुन्दर कथा है, वही इस सुहावनी नदी में शोभा छा रही है। अनेक प्रकार के विवेकपूर्ण प्रश्न ही इस नदी की नार्वे हैं | और उनके विवेकमय उत्तर ही उन ( नावों ) के चतुर केवट हैं। म) सुनि अनुकथन परसपर होई के पथिक समाज सोह सरि सोई | घोर धार भृगुनाथ रिसानी ॐ घाट सुवद्ध राम वर वानी एम) इस कथा को सुनकर पीछे जो आपस में चर्चा होती हैं, वहीं मानो इस नदी के किनारे चलने वाले यात्रियों का समूह सोहता है । परशुरामजी की क्रोध एम) इस नदी की भयानक धारा है और रामचन्द्रजी के श्रेष्ठ वचन ही सुन्दर बँधे हुए ( पक्के ) घाट हैं। म सानुज राम बिवाह उछाहू ॐ सो सुन उमंग सुखद सत्र काहू एमाले । कहत सुनते हषहिं पुलकाहीं ॐ ते सुकृती मन मुदित नहाही । . १. कमल । २. उत्तर, जवाव । ३. छोटे भाई सहित ।।