पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/७५

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७२ चाहिं मन % * ... भाइयों-संहित रामचन्द्रजी के विवाह का उत्साह ही इस (कथा-नदी ) । * की कल्याणकारिणी बाढ़ है, जो सबको सुख देने वाली है। इसके कहने-सुनने ॐ में जो लोग पुलकायमांन और आनन्दित होते हैं, वे ही पुण्यात्मा पुरुष प्रसन्न म मन से स्नान करते हैं। ॐ रामतिलक . हित मंगल साजा ॐ परब जोग जनु जुरे समाजा राम) काई कुमति केकई केरी ॐ परी जासु फल विपति घनेरी ॐ .. रामचन्द्रजी- के राज-तिलक के लिये जो मंगल-साज सजाया गया, वही है रामो इस नदी पर पूर्व के दिन यात्रियों की भीड़-भाड़ है। कैकेयी की कुबुद्धि ही इस लामो नदी में काई है, जिसके फल से घोर विपत्ति आ पड़ी। समन अमित उतपात सब भरत चरित जप जाग। * कलिअघ खल अवशुन कथन ते जव मल बुक काग। लामो । अनगिनत उत्पातों को शान्त करने के लिये भरत का चरित्र नदी-तट पर है। राम किया जाने वाला जप-यज्ञ है, कलियुग के पापों और दुष्टों के दोषों के जो वर्णन राम ॐ हैं, वे ही इस नदी के जल के कीचड़, बगुले और कौए हैं। राम कीरति सरित छहूँ रितु रूरी ॐ समय सुहावनि पावनि भूरी राम * हिम हिमसैलसुता सिव व्याहू ॐ सिसिर सुखद प्रभु जनम उछाहू * : यह कीर्ति-रूपिणी नदी छहों ऋतुओं में सुन्दर और सभी समयों पर परम * सुहावनी और अत्यन्त पवित्र है। इसमें शिव-पार्वतीजी का विवाह हेमंत-ऋतु है । और रामचन्द्रजी का जन्मोत्सब सुख देने वाली शिशिर-ऋतु है। बरनव राम विवाह समाजू ॐ सो मुद मंगलमय रितुराजू ग्रीषम दुसह राम वन गवनू ॐ पंथ कथा खर’ आतप पवनू राम) : इंसमें रामचन्द्रजी के विवाह-समाज का वर्णन आनन्द-मंगलमय ऋतुराज राम ऊँ बसन्त है। रामचन्द्रजी का बन-गमन ही असह्य ग्रीष्म-ऋतु है और मार्ग की है। (राम) कथा ही कड़ी धूप और लू है। ऊँ बरषा घोर निसाचर रारी" ॐ सुरकुल सालि सुमंगलकारी । राम राम राज सुख विनय बड़ाई ॐ विसद सुखद सोइ सरद सोहाई एमा .. राक्षसों के साथ घोर युद्ध ही वर्षा-ऋतु है, जो देवताओं के कुलरूपी धान १. सुन्दर । २. वहुत । ३. कड़ी । ४. युद्ध ।