पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/७६

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के लिये सुन्दर कल्याण करने वाली है। रामचन्द्रजी के राज्य में जो सुख, सुनीति और प्रशंसा है वही सुख देने वाली निर्मल शरद-ऋतु है ।

सती सिरोमनि सिय गुन गाथा ॐ सोइ गुन अमल अनूपम पाथा 
भरत सुभाउ सुसीतलताई ॐ सदा एक रस वरनि न जाई | 

सती-शिरोमणि सीताजी के गुणों की जो कथा है, वहीं इसके जल का निर्मल और अनुपम गुण है । भरतजी का स्वभाव इस नदी की सुन्दर शीतलता है, जो सदा एक-सी रहती है और जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता। है ।

अवलोकनि' बोलनि मिलनि प्रीति परसपर हास ।।  
भायप भलि चहुँ बंधु की जल माधुरी सुवास ।।१२।। 

चारों ओर भाइयों को परस्पर देखना, बोलना, मिलना, परस्पर रनेह करना, ॐ हँसना और सुन्दर भाईपन इस जल की मिठास और सुगन्ध है।

राम रति विनय दीनता मोरी ॐ लघुता ललित सुवारि न खोरी
अदभुत सलिल सुनत गुनकारी । आस पिआस मनोमल हारी | 

मेरी आर्ति, विनती और दीनता ही इस सुन्दर स्वच्छ जल का हलकोपन है; पर अच्छे जल को हल्का होना कोई दोष नहीं है । यह जल बड़ा ही अनोखा राम्ो है कि सुनते ही गुण करता है और आशारूपी प्यास और मन के मैल को दूर राम कर देता है ।।

राम सुप्रेमहि पोषत पानी ॐ हरत सकल कलि कलुप गलानी 
भव श्रम सोषक तोषक तोष ॐ समन दुरित दुख दारिद दोषा

यह जल रामचन्द्रजी के सुन्दर प्रेम को पुष्ट करता है और कलियुग के सब पापों को और उनसे उत्पन्न ग्लानि को हर लेता है। यह जल संसार की थकावट को सोख लेता है, सन्तोष को भी संतुष्ट करता है और पाप, दुःख दरिद्रता और दोषों को नष्ट करता है ।।

काम कोह मद मोह नसावन । विमल विवेक विराग वढ़ावन 
सादर मजन पान किए तें । मिटहिं पाप परिताप हिए तें

यह जल काम, क्रोध, मद और मोह को नष्ट करने वाला और निर्मल,

१. देखना ।