पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/७७

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राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम

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ज्ञान और वैराग्य का बढ़ाने वाला है। इसमें आदर-सहित स्नान करने और इसे पीने से हृदय के सारे पाप और दुःख मिट जाते हैं।

जिन्ह एहि बारि न मानस धोए । ते कायर कलिकाल बिगोए॥ 
त्रिषित निरखि रविकर भव बारी । फिरिहहिं मृग जिमि जीव दुखारी ॥ 

जिन्होंने इस जल से अपना हृदय नहीं धोया, वे कायर कलिकाल द्वारा ठगे गये या बिगाड़े गये । जैसे प्यासा हिरन सूर्य की किरणों के पड़ने से रेत पर जल का भ्रम ( मरीचिका ) देखकर दौड़ता है, वैसे ही वे कलियुग से ठगे हुए मनुष्य भी ( संसारी विषयों के पीछे भटक कर ) दुःखी होंगे।

 मति अनुहारि सुवारि गुन गन गनि मन अन्हवाई।
 सुमिरि भवानी संकरहि कह कबि कथा सुहाइ॥४३॥(१) 

अपनी बुद्धि के अनुसार सुन्दर जल के गुणों को गिनाकर इस सुन्दर जल में * अपने मन को स्नान कराकर और पार्वती-महादेवजी को स्मरण करके कवि (तुलसीदास) सुन्दर कथा कहता है।

अब रघुपति पद पंकसह हिअ धरि पाइ प्रसाद ।।
कहीं जुगल मुनिवर्य कर मिलन सुभग संबाद ॥४३॥(२) 

मैं अब रामचन्द्रजी के चरण-कमलों को हृदय में धारण कर और उनका ॐ प्रसाद पाकर दोनों मुनिवरों के मिलने का सुन्दर संवाद वर्णन करता हूँ।

भरद्वाज मुनि बसहं प्रयागा ॐ तिन्हहिं राम पद अति अनुरागा ॥ 
तापस सम दम दया निधाना ॐ परमार्थ पथ परम सुजाना ॥

भरद्वाज मुनि प्रयाग में बसते हैं। रामचन्द्रजी के चरणों में उनका बहुत ही प्रेम है। वे तपस्वी, शान्त, जितेन्द्रिय, दया के निधन और परमार्थ के मार्ग में बड़े ही चतुर हैं।

माघ मकरगत रबि जब होई ॐ तीरथपतिहि आव सब कोई ॥
देव दनुज किन्नर नर स्रेनी ॐ सादर मज्जहिं सकल त्रिबेनी ॥

माघ के महीने में जब सूर्य मकर-राशि में आते हैं, तब सब कोई तीर्थराज ( प्रयाग ) में आते हैं। देव, दैत्य, किन्नर और मनुष्यों के झुण्ड सभी आदर ॐ पूर्वक त्रिवेणी में स्नान करते हैं ।। ॐ

१. विगाड़ दिया, ठगे गये । २. कमल ।।