पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/७९

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ॐ ७६ अ न . . कै भरद्वाजजी ने आदर-सहित उनके चरण-कमल धोये और बहुत पवित्र के आसन पर उन्हें बैठाया। पूजा करके मुनि के यश का वर्णन किया और फिर ॐ अत्यंत पवित्र और कोमल वाणी से बोले-- नाथ एक संसउ बड़ मोरें ले करगत वेदतत्त्व सबु तोरे में ॐ कहत सो मोहिं लागत भय लाजा ॐ जौं न कहीं बड़ होइ अकाजा हे नाथ ! मेरे हृदय में एक बड़ा सन्देह है, वेदों का सब तत्व आपके हाथों क्री में है। उस सन्देह को कहते हुये मुझे भय और लज्जा मालूम होती है। पर न हो राम कहूँ तो भी बड़ी हानि होगी । संत कहहिं अस नीति प्रभु श्रुति पुरान मुनि गाव। है होइ न बिकल बिबेक उर गुर सन किए दुराव' ।४५॥ हैं राम हे प्रभो ! सन्तजन ऐसी नीति कहते हैं और वेद-पुराण तथा मुनि भी यही राम ॐ बतलाते हैं कि गुरु के साथ छिपाव रखने से हृदय में निर्मल ज्ञान नहीं होता। म् अस बिचारि प्रगटउँ निज मोहू ॐ हरहु नाथ करि जन पर छोटू ॐ राम नाम कर अमित प्रभावी ॐ संत पुरान उपनिषद गावा यही सोचकर मैं अपना अज्ञान प्रकट करता हूँ । हे नाथ ! आप इस दास ॐ पर कृपा करके इस सन्देह को दूर कीजिये। संत, पुराण और उपनिषद् ने रामके नाम के असीम प्रभाव का गान किया है। संतत जपत संभु अविनासी ॐ सिव भगवान ग्यान गुन रासी है आकर चारि जीव जग अहहीं ॐ कासी मरत परम पद लहहीं सम) जिसको नित्य कल्याण-स्वरूप, अविनाशी और ज्ञान और गुणों की राशि रामा ॐ भगवान् शंकर जपते हैं। संसारे में जीवों की चार जातियाँ हैं। काशी में मर के कर सब परम पद को प्राप्त करते हैं। सोपि राम महिमा सुनिराया ॐ सिव उपदेसु करत करि दाया रामु कवन प्रभु पूछउँ तोहीं ॐ कहिअ बुझाइ कृपानिधि मोहीं हे मुनिराज ! सो यह भी राम (नाम) ही की महिमा है; शिवजी दया करके जिसका उपदेश करते हैं। हे प्रभो ! मैं आपसे पूछता हूँ कि वे राम कौन न हैं ? हे कृपासागर ! मुझे समझा कर कहिये । १. छिपाव । २. सदा, नित्य ।