पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/८

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8 कुलसीदासजी का जीवन हरित क्षेत्र ७ के ।

कर्कशता और उनके जीवन का कल्मष दूर हो और वे पुखी बनें । इससे । से उन्होंने भक्ति पर अधिक तन्मयता दिखलाई पर भक्ति का विवेचन उन्होंने के दकवि ही की हैसियत से किया है। तुलसीदास एक राम के उपासक थे । उन राम कौन थे १ में सेवक, है सचराचर रूपरासि भगवन्त' कहाने वाले राम 1 अर्थात् यह सचराचर जगत् ही हैं से उनका राम था। उसी के लिये उन्होंने तपस्या की थी। उनकी तपस्या का के ठ एक प्रत्यक्ष फल रामचरितमानस' है । संसार की भयानक चिपत्तियाँ सहक्र कवि तुलसीवास ने हमें अमूल्य हैं के पदार्थ ‘रामचरितमानस' के रूप में दान दिया है, उसकी तुलना संसार के हैंहैं को किसी दान से नहीं हो सकती । ‘रामचरितमानसएक कल्याणकारी ग्रन्य है। से है । बह एक साँचा है जिसमें जीवन को ढालकर उससे एक सुन्दर स्वरूप राम प्राप्त किया जा सकता है । इस ग्रन्यरत्न का आदर गरीब की झोंपड़ी से लेकर राजमहल तक 6 के है । अच्छेअच्छे विद्वान् भी इसका आनन्द लेते हैं और अपढ़ और अशिक्षित हैं भी इसे बड़े चाव से गाते और सुनते हैं । ज्ञान-प्राप्ति के लिये मनुष्य ने वर्णमाला का निर्माण किया पर जो s हैं उसे नहीं जानते वे ज्ञान से भी वंचित रह जाते हैं । ज्ञान और मनुष्य के A, बीच में वह एक दीवार है, जिसे लाँचे बिना न कोई बाल्मीकि, व्यास को दहें जान सकता है, न कालिदास को और न शेख सादी या शेक्सपीयर को । ले के पर तुलसीदास ने अक्षरों की उस दीवार को तोड़ दिया है। अक्षरज्ञान से हैं के रहित अहीर, धोबी, चमार, नाईकहार आदि जातियों के लोग 'मानस' की । चौपाइयाँ अपने जातीय गीतों में मिलाकर गाते और नाचते हैं । अक्षरों पर हैं के इस तरह की विजय संसार में शायद ही किसी कवि को प्राप्त हुई हो । ऐसे ग्रन्थरत्ल की चर्चा के पहले उसके रचयिता का जीवन-वरित हैं जानने की लालसा उसके प्रेमी पाठकों में स्वभावतः उत्पन्न होती है। पर खेद । में है, कवि में अपने गौरव का गर्भ था ही नहीं; इससे उसने अपने बारे में हमें हैं कुछ नहीं बताया । अपने राम से विनयप्रदर्शन करने में प्रसंगवश उसके सुख है छे से जो कुछ निकला , उसी से हम उसके जीवन-चरित का कुछ अनुमान फेंके से कर सकते हैं । उसके सम्बन्ध की कुछ -कथाएँ भी मुख से मुख में चली छे आ रही , उनमें भी सचाई का बहुत कुछ अंश है । हमने उन सबको, जो के हूं उपलब्ध हो सक, एकत्र कर दिया है।