पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/८७

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| ॐ ६४ . चटना : ६ के . स्त्री के स्वभाव का प्रभाव तो देखो कि सती ने वहाँ उन सर्वज्ञ के सामने के से भी छिपाव करना चाहा। अपनी माया के बल को हृदय में बखानकर, हँसकर, ॐ कोमल वाणी से रामचन्द्रजी बोलेम) जोरि पानि' प्रभु कीन्ह प्रनामू के पिता समेत लीन्ह निज नाम् ही कहेउ बहोरि कहाँ बृषकेतु के बिपिने अकेलि फिरहु केहि हेतू हूँ राम पहले प्रभु रामचन्द्रजी ने हाथ जोड़कर सती को प्रणाम किया और पिता सहित अपना नाम लिया। फिर कहा कि शिवजी कहाँ हैं ? आप यहाँ बन में अकेली किस लिये फिर रही हो ? । राम बचन मृदु गूढ़ सुनि उपजा अति संकोचु ।। सती सभीत' महेस पहिं चलीं हृदयँ बड़ सोचु।५३।। रामचन्द्रजी के कोमल और गूढ़ वचन सुनकर सती को बड़ी संकोच हुआ। वे डरती हुई शिवजी के पास चलीं, उनके हृदय में बड़ी चिंता हो गई। रा। मैं संकर कर कहा न माना $ लिज अग्यानु राम पर आना राम जाइ उतरु अब देहउँ काहा ॐ उर् उपजा अति दारुन दाहा * मैंने शङ्करजी का कहना नहीं माना और अपनी नासमझी रामचन्द्रजी पर प्रकट की। अब जाकर मैं शिवजी को क्या उत्तर देंगी ? यह सोचकर सतीजी के हृदय में भयानक जलन उत्पन्न हुई। से जाना राम सती दुखु पावा ने निज प्रभाउ कछु प्रगटि जनावा। ॐ सती दीख कौतुक मग जाता ॐ आगे राम सहित श्री भ्राता रामचन्द्रजी ने जान लिया कि सतीजी को दुःख हुआ। तब उन्होंने कैं अपना कुछ प्रभाव प्रकट करके दिखाया । सती ने मार्ग में जाते समय यह कौतुक रामो देखा कि रामचन्द्रजी लक्ष्मण और सीता-सहित आगे चले जा रहे हैं। ॐ फिर चितवा पाछे प्रभु देखा ॐ सहित बंधु सिय सुन्दर बेषा एम् जहँ चितवहिं तहँ प्रभु आसीना' के सेवहिं सिद्ध मुनीस प्रवीना उन्होंने पीछे की ओर फिरकर देखा, तो भाई लक्ष्मण और सीताजी के साथ रामचन्द्रजी को सुन्दर वेष में पाया। वे जिधर देखती हैं, उधर ही रामचन्द्रजी विराजमान हैं और प्रवीण सिद्ध मुनि उनकी सेवा कर रहे हैं। । १. हाथ। २. डर सहित । ३. बैठे हुये, विराजमान । राम-रामाराम**राम- राम-*एम -राम -राम)*=*णमा-एम-एम)*