पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/८८

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- - ऊँ देखे सिव विधि बिष्नु अनेका ॐ अमित प्रभाउ एक ते एका रामे बंदत चरन करत प्रभु सेवा के विविध वेष देखे सव देवा । सती ने अनेक शिव, ब्रह्मा और विष्णु भी देखें, जो एक से एक बढ़कर असीम प्रभाव वाले थे। उन्होंने देखा कि तरह-तरह के वेष धारण करके सभी देवता रामचन्द्रजी की चरण-नन्दना और सेवा कर रहे हैं। । , सती बिधात्री इंदिरा देखी अमित अल्लूए । एम) 15 जेहि जेहि बेष अजादियुर लैहि तेहि तन अनुरूप ५४ राम उन्होंने बहुत-सी सती, सरस्वती और लक्ष्मी देखीं, जो अनुपम थीं | जिसराम्रो जिस वेष में ब्रह्मादि देवता थे, उन्हीं के अनुकूल वेष में वे भी थीं। * देखे जहँ तहँ रघुपति जेते ॐ सक्तिन्ह सहित सकल सुर तेते ॐ जीव चराचर जो संसारा ॐ देखे सकल अनेक प्रकारा म) सती ने जहाँ-तहाँ जितने रामचन्द्र देखे, उन्हीं के साथ शक्तियों के सहित राम * उतने ही सारे देवताओं को भी देखा । संसार में जितने चराचर जीव हैं, वे भी होम वहाँ अनेक प्रकार के देखे ।। हैं पूजहिं प्रभुहिं देव बहु वेखा ॐ राम रूप दूसर नहिं देखा राम्रो अवलोके रघुपति बहुतेरे सीता सहित न वेष घनेरे राम अनेक वेष धारण किये हुए देवता रामचन्द्रजी का पूजन कर रहे हैं। । परन्तु रामचन्द्रजी का दूसरा रूप कहीं नहीं देखा । सीता-सहित रामचन्द्रजी भी बहुत-से देखे, पर उनके वेष अनेक नहीं थे। * सोइ रधुवर सोइ लछिमनु सीता ॐ देखि सती अति भई सुभीता । हृदय कंप तन सुधि कछु नाहीं ॐ नयन मंदि बैठी मग माहीं | वही रामचन्द्रजी, वही लक्ष्मणजी और वही सीताजी । ऐसा देखकर सती राम) बहुत डर गईं। उनका हृदय काँपने लगी और तन की सारी सुध-बुध जाती रही। राम) ॐ वे आँख मूंदकर मार्ग में बैठ गईं। राम) बहुरि बिलोकेउ नयन उघारी ॐ कछु न दीख तहँ दच्छकुमारी पुनि पुनि नाइ राम पद सीसा ॐ चलीं तहाँ जहँ रहे गिरीसा ।। १. सरस्वती । २. लक्ष्मी । ३. ब्रह्मा आदि । ४. शिवजी ।