पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/९३

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राम -राम -राम -राम- राम)--राम- राम -राम -राम -राम)-455-राम-+#+मो । है ६० : अमाचत नस ॐ तो मैं हाथ जोड़कर विनती करती हूँ कि मेरा यह शरीर जल्दी छूट जाय। यदि मेरा शिवजी के चरणों में प्रेम है और मन, वचन, कर्म से मेरा ) पातिव्रत सच्चा हैराम : तौ सबदरसी सुनिअ प्रभु करौ सो बेगि उपाइ । राम को होइ मरनुजेहि बिनहिंस्रम दुसहु बिपत्ति बिहाइ',५९। तो हे सर्वदर्शी प्रभो ! सुनिये और जल्दी उपाय कीजिये, जिससे मेरा मरण हो और बिना ही परिश्रम यह असह्य विपत्ति छूट जाय । । एहि विधि दुखित प्रजेसकुमारी को अकथनीय दारुन दुखु भारी हैं। राम बीते सम्बत सहस सतासी ॐ तजी समाधि सम्भु अबिनासी राम इस तरह राजा दक्ष की पुत्री सती बहुत दुःखी थीं । उनको बड़ा कठिन हैं दुःख था, उसका वर्णन नहीं हो सकता । सत्तासी हज़ार बर्ष बीत गये, तब राम ॐ अविनाशी महादेवजी ने अपनी समाधि खोली ।। रामो रामनाम सिव सुमिरन लागे $ जानेउ सती जगतपति जागे । । जाइ सम्भु पद बंदनु कीन्हा ॐ सन्मुख सङ्कर आसन दीन्हा । शिवजी रामनाम का स्मरण करने लगे, तब सती ने जाना कि अब जगत् । * के स्वामी जागे । उन्होंने जाकर शिवजी के चरणों में प्रणाम किया । शिवजी ने । उनको बैठने के लिये सामने आसन दिया। | लगे कहन हरि कथा रसाला $ दच्छ प्रजेस भये तेहि काला * देखा विधि विचारि सब लायक ॐ दच्छहिं कीन्ह प्रजापति नायके कैं। | शिवजी भगवान् हरि की रसीली कथायें कहने लगे। उसी समय (सतीजी (राम) के के पिता ) दक्ष प्रजापति हुए थे। ब्रह्मा ने सब तरह से योग्य समझकर दक्ष को । में प्रजापतियों का नायक बना दिया। ।। है बड़ अधिकार दच्छ जव पावा ) अति अभिमान हृदय तब आया हूँ राम नहिं कोउ अस जनमा जग माहीं ॐ प्रभुता पाइ जाहि मद नाहीं जब दक्ष ने इतना बड़ा अधिकार पाया, तब उनके मन में अत्यन्त अभि- * मान आ गया। संसार में ऐसा कोई नहीं जन्मा है, जिसे प्रभुता पाकर मद न हो। [अर्थान्तरन्यास अलंकार] १. छूट जाय । <