पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/९७

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६४. छाटभन : ४ क़ सुनहुः सभासद सकल, मुनिन्दा की कही सुनी जिन्ह सङ्कर निंदा राम) सो फल तुरत लहब सब काहू 8 भली भाँति पछिताव पिताहू - ॐ .. हे सभासदो और सब मुनीश्वरो ! सुनो। जिन लोगों ने यहाँ शिवजी की लामो निन्दा कही या सुनी है, उन सबको उसको फल तुरंत ही मिलेगा और मेरे पिता राम) दक्ष भी खूब पछतायँगे । ... . ए संत संभु श्रीपति : अपवादा ॐ सुनिअ जहाँ तहँ असि मरजादा काटिअ तासु जीभ जो बसाई' ॐ स्रवन मूदि न त चलिअ पराई . जहाँ संत, शिवजी और लक्ष्मीपति ( विष्णु भगवान् ) क़ी निन्दा सुनी जाय, वहाँ ऐसी मर्यादा है कि वश चले, तो उस निन्दक की जीभ काट ले और नहीं तो अपने कान बन्द करके वहाँ से भाग जाय । जगदातमा महेसु पुरारी ॐ जगत जनक सबके हितकारी पिता मंदमति निंदत तेही $ दच्छ सुक्र संभव” यह देही (राम) त्रिपुर दैत्य के शत्रु भगवान् शिवजी सारे जगत् की आत्मा हैं। वे सबके | उत्पन्न करने वाले और हितकारी हैं। मेरा मूर्ख पिता उनकी निन्दा करता है। रामा और मेरा यह शरीर दक्ष ही के वीर्य से उत्पन्न हुआ है। तजिहउँ तुरत देह तेहि हेतूः ॐ उर धरि चंद्रमौलि बृषकेतू है अस कहि जोग अगिनि तनु जारा ॐ भयउ सकल मष हाहाकारा .. इसलिये चन्द्रमा को मस्तक पर धारण करने वाले और वृषकेतु शिवजी कों हृदय में धारण करके मैं इस शरीर को तुरन्त त्याग दूंगी । ऐसा कहकर योग की अग्नि में सती ने अपना शरीर भस्म कर डाला । ( यह देखकर ) सारी यज्ञशाला में हाहाकार मच गया। * , सती मरनु सुनि संभु गन लगे करन मष खीस। हैं जग्य बिधंस बिलोकि भृगु रच्छा कीन्हि मुनीस॥६४॥ ॐ | सती का मरण सुनकर शिवजी के गण यज्ञ को विध्वंस करने लगे। यज्ञको विध्वंस होते देखकर मुनीश्वर भृगुजी ने उसकी रक्षा की। समाचार जब संकर पाये ॐ बीरभद्र करि . कोप पठाये । जग्य बिधंस जाह तिन्ह कीन्हा ॐ सकल सुरन्ह विधिवत फल दीन्हां १. वश चले । २. भाग। १. वीर्य । २. उत्पन्न ।