पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/९८

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- - - मजाना तो विद्रोही की इन किया । == + + ++++++ 41.4Fr+++ - । झाझा| जब यह समाचार शिवजी को मिला, तब उन्होंने कोप करके वीरभद्र को । यस भेजा। उन्होंने वहाँ जाकर यज्ञ विध्वंस कर डाला और सारे देवताओं को यथोचित फल ( दंड ) दिया । राम भइ जग बिदित दच्छ गति सोई ॐ जसि कछु संभु विमुख कै होई यह इतिहास सकल जग जाना की तारों में संछेप चखाना . दक्ष की संसार-प्रसिद्ध वही गति हुई, जो शिव-द्रोही की हुआ करती है। * इस इतिहास को सारा संसार जानता है, इसलिये मैंने संक्षेप में वर्णन किया । । सती मरत हरि सन बरु माँगा ॐ जनम जनम सिवपद अनुरागा । राम) तेहि कारन हिमगिरि गृह जाई ॐ जनमी पारवती तनु पाई | मरते समय सती ने भगवान् हरि से यह वर माँगा कि हरएक जन्म में हैं। एम शिवजी के चरण ही में मेरा अनुराग रहे। इसी कारण हिमवान् के घर जाकर । ॐ पार्वती का शरीर धारण करके उन्होंने जन्म लिया। राम जब तें उसा सैल गृह जाई' ॐ सकल सिद्धि संपति तहँ छाई । जहँ तहँ सुनिन्ह सुस्रिम कीन्हे के उचित बास हिम भूधर दीन्हे जब से उमा हिमवान् के घर जन्मीं तब से वहाँ सारी सिद्धियाँ और सम्पत्तियाँ छा गई । मुनियों ने जहाँ-तहाँ अच्छे-अच्छे आश्रम बना लिये और । हिमवान् ने उन्हें उचित स्थान दिये ।। लामो छ। सदा सुसन फल सहित सब दूस नव नाना जाति। - प्रगटीं सुन्दर सैल पर मनि आकर बहु भाँति ॥६५॥ पर्वत पर भाँति-भाँति के सब नवीन वृक्ष सदा फल-फूल-सहित हो गये एम) और मणियों की बहुत तरह की सुन्दर खानें प्रकट हो गई। सरिता सर्व पुनीत जलु बहहीं ॐ खग मृग मधुप सुखी सब रहहीं । एम् सहज बयरु सब जीवन्ह त्यागा ॐ गिरि पर सकल करहिं अनुराग सारी नदियों में पवित्र जल बहता है और पक्षी, पशु, भरे सभी सुखी रहते ए हैं। सब जीवों ने अपना स्वाभाविक वैर छोड़ दिया । पर्वत पर सब जीव परस्पर र प्रेम करते हैं। १. पैदा हुई, जन्मी । २. खान । 1- 47

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