पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/२०८

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समाजवादी दल १९५ अवस्थामें क्रान्तिकारी मनोवृत्तिको जिन्दा रखना, मजदूरोका सुदृढ संगठन बनाना, किसान-मजदूरोका जहाँ सम्भव हो, संयुक्त मोर्चा बनाना तथा किसान-मजदूरोके जमीदार पूंजीपतियोसे जो संघर्ष हो, उनका नेतृत्व करना हमारा काम है । इन सब कार्योको सुसम्पन्न करनेके लिए पार्टीको एक उपयुक्त साधन बनाना अति आवश्यक है। पार्टीके सदस्योकी शिक्षा-दीक्षाकी उचित व्यवस्था करना, उनको विभिन्न कार्योमे नियुक्त करना तथा संगठनको सुदृढ करना हमारा कर्तव्य है ।' समाजवादी दल कामरेड सभापति महोदय और मित्रो, आज पार्टीके इस पाँचवे वार्षिक अधिवेशनके अवसरपर आप सवका हार्दिक स्वागत करनेका गौरवास्पद कर्त्तव्य मुझे मिला है। हम नौ वर्पके वाद एकत्र हो रहे है । इस वीच ससारके सभी भागोमे व्यापक परिवर्तन हुए है । इस महायुद्धसे ब्रिटिश साम्राज्य- वादको महान् धक्का लगा है और उपनिवेशोके लोगोमे राष्ट्रीय स्वतन्त्रताके आन्दोलन अत्यधिक सवल हो गये है। राष्ट्रीय तथा क्रान्तिमूलक चेतना एव भावनाएँ जनतामे वहुत द्रुत गतिसे परिपक्व हो रही है । हमारे अपने देशमे ही जनतामे अभूतपूर्व चेतना और क्रियाशीलता दृष्टिगोचर होती है यद्यपि दुर्भाग्यवश प्रतिक्रियावादी नेतृत्वमे ये प्राय. हानिकर एवं अवाञ्छनीय दिशालोमे मुडी हुई है और इस कारण प्रगतिशील कार्यक्रमके लिए हानिप्रद हुई है, किन्तु इन सव वातोसे यह तो स्पष्ट हो ही जाता है कि जनतामे एक चेतना जागृत हुई है जो इसके पहले कभी नहीं हुई थी और यदि प्रतिक्रियावादी नेतृत्वको उसके वर्तमान शक्ति और प्रभावके पदसे च्युत कर दिया जाय तो जनता क्रान्तिमूलक सघर्पकी ओर ले जायी जा सकती है । ससारके अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धोका सतुलन तो नष्ट हो ही गया है साथ ही सभी देशोमे विभिन्न वर्गोके वीचका साम्य भी आलोडित हो गया है। निम्नतर मध्यम-वर्गके बड़े- बडे भागोका आर्थिक दृष्टिसे विनाश-सा हो गया है और अब अपनी माँगोके लिए उन्होने हड़तालके अस्त्रका प्रयोग किया। महायुद्धके कारण यूरोपकी सबसे अधिक क्षति हुई है । इसकी आर्थिक स्थिति छिन्न-भिन्न हो गयी है । विभिन्न दलोका सामाजिक प्राधार बदल रहा है और प्राचीन बुर्जुआ उदार दल अपने पहलेके प्रभावका बहुत अश खो चुके है । सोशलिस्ट और कम्युनिस्ट दलोकी शक्ति बढ गयी है और एक नवीन उदारचेतादल ( Catholic Party ) जो समाजके पिछड़े हुए अशका प्रतिनिधित्व करता है आविर्भूत हो गया है। १. 'जनवाणी'-फरवरी १९४७ ई० २. मार्च १९४७ को कानपुरमे सोशलिस्ट पार्टी कान्फरेन्सके स्वागताध्यक्ष-पदसे दिया गया भाषण।