पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/६७

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  • शाहीमहलसरा * तबीयत कुछ हरी होगई, फिर मैं उस नकाबपोश औरत से बातें करने लगा ! मैंने कहा,-"अब मैं उम्मीद करता हूं कि इस वक तुम मेरे चंद सवालों का सही सही जवाब दोगी।" :

उसने कहा, "तुम्हारे सवालों के जवाब देने में तो मुझे कोई . उन्न नहीं है, लेकिन बात यह है कि अभी तुम इतने कमज़ोर हो कि थोड़ी देर तक बात चीत करने में ही तुम्हारा सिर चक्कर खाने लगेगा।" मैंने कहा,-*बात तो ठीक है, लेकिन अब मे जी इस कदर ऊब रहा है कि बगैर कुछ हाल जाने, मेरे दिल को तस्कीन नहीं होता।" ... . ___ उसने कहा,-"खेर तो, दो चार रोज़ और सब करो, इसके बाद मैं तुम्हारे कुल सवालों का जवाब, जो कुछकि मैं जानती होऊंगी, जरूर दूंगी; और इस वक्त मैं यहां ज़ियादह देर तक ठहर भी नहीं सकती !" .... .... ....... यो कहकर वह उठी और ताक पर से एक शीशी उतार और उसमें के अर्क की कई बूँदें एक गिलास पानी में डाल कर उसने मुझे पिलादी और इधर उधर की बातें करनी शुरू की। कुछही देर में मैं सोगया और फिर मुझे कुछ भी खबर न रही कि क्या हुआ।