पृष्ठ:लालारुख़.djvu/४६

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चतुरसेन की कहानियाँ दो खोजे शाहजादा को सी ले आये। मलिका ने कहा, "क्या तुम कह सकते हो कि दिल्ली के तख्त पर किसकी हुकूमत है ?" "जी हाँ कह सकता हूँ, बेगम नूरजहां की " "बादशाह जहाँगीर की क्यों नहीं ?" "वे मलिका के हुक्मी बन्दे हैं।" "क्या यह सच है कि बेगम की कार्रवाइयों से राजपूतों के दिल सल्तनत और बादशाह से फिर रहे हैं ? “जी हाँ, झितने ही राजपूत राजा जो पहिले तख्त के फ़र्मा- बार थे अब बागी हो रहे हैं। कुछ जाहिरा, कुछ छुपे छुपे, और यही रंग ढंग रहा तो एक दिन वे खुल खेलेंगे।" "क्या जहाँपनाह अपनी सफाई पेश करेंगे ?" बादशाह जो अब तक भी पूरे होशोहवास में न था, धीरे से बोला, "नहीं। "और हजरत मलिका ?" "नहीं, गुस्से से होठ चबा कर मलिका नूरजहां ने कहा। "और शाहजादा खुर्रम " "जब जहाँपनाह ने और मलिका ने अपने को आपके रहम पर छोड़ दिया है तो मैं भी कुछ कहना मुनासिब नहीं समझता।" "क्या यह मुनासिब न होगा कि इन दोनों को कत्ल करके हस्व मामूल अदालत आगरे की शहरपनाह के फाटक पर इनकी लाशों को डाल दिया जाय ?" इसके जवाब में कुछ देर इस अद्भुत अदालत में सन्नाटा अंधेरा हो गया और बादशाह और बेगम दोनों रहा,