पृष्ठ:लेखाञ्जलि.djvu/१०५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
९७
चित्रों द्वारा शिक्षा

बूढ़े, स्त्रियाँ एक हो जाते तब लेक्‌चर आरम्भ होता है और कोई एक घंटे तक होता रहता है। बड़े-बड़े गांवों और कसबोंमें खास तौरपर लेक्‌चरका प्रबन्ध किया जाता है। लेक्‌चर देनेवाला निर्दिष्ट विषयके चित्र दिखाता जाता है और उनका मर्म अपने पासकी पुस्तक देख-देखकर समझता जाता है जैसे यदि अमेरिकाकी खेतीके सम्बन्धके चित्र दिखाये जाते हैं तो भी खेती करनेके ढंग ओर फसल काटने, माँड़ने, उड़ाने इत्यादिके यन्त्रोंके चित्र दिखाते समय लेक्चर देनेवाला उनके उपयोग आदि भी समझाता जाता है। इस समय इस शाखाके पास जो चित्र हैं उनका अधिक सम्बन्ध योरप और अमेरिकासे ही है। उनमें उन्हीं महादेशोंके दृश्य दिखाये गये हैं। यह बात हम लोगोंके लिए भी लाभदायक है, पर बहुत अधिक नहीं। ऐसे ही चित्रोंकी अधिकता होनी चाहिये जिनका सम्बन्ध अपने देशसे हो। अमेरिका के बाजारोंके दृश्य और ब्रिटानीके गुलाबके बागके दृश्य देखकर देखनेवालों को उतना लाभ नहीं हो सकता जितना कि ताजमहल, अजंताकी गुफाओं, सांची और सारनाथके स्तूपों, और काशीके घाटोंके दृश्य देखकर हो सकता है! इस त्रुटिको पुस्तकालयके अधिकारी भी समझते हैं और शायद वे इसे दूर करने की फिक्र भी कर रहे हैं।

जो दो सीनिमा-मैशीनें चित्र-शिक्षाके काम आती हैं उनमेंसे "पाथे" की मैशीन दूसरी मैशीनसे अच्छी है। उसका पूरा नाम, अँगरेजीमें है—"पाथेज़ सेल्फ़ कन्टेन्ड सिनेमा ग्रूप। उसकी कीमत दो हज़ार रुपया है। उसके एंजिनमें पेट्रोल जलाया जाता है।