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सन १९२१ की मनुष्य-गणना

शोंसे ज्ञात हो जाती हैं। इन नकशोंके अध्ययनसे देशकी वास्तविक दशाका चित्र आंखोंके सामने आजाता है । ये नकशे आईनेका काम देते हैं। पिछली मनुष्य-गणनासे मनुष्य-संग्ख्यामें वृद्धि हुई या हास.यह तो मालूम ही हो जाता है; हास और वृद्धिके कारणोंपर विचार करनेके लिए भी सामग्री मिल जाती है। उससे हासके कारणोंको दूर करने के उपाय भी निकाले जा सकते हैं। ये सब बातें बड़े लाभकी हैं। राजपुरुषों और राजकर्मचारियों के लिए मनुष्य-गणनाका फल जानना और उससे लाभ उठाना नो अनिवार्य ही मा है। सर्व-साधारणको भी उससे जानकारी प्राप्त करना चाहिये। जो लोग देश-हित-चिन्तक हैं---जो लोग प्रजाके नायक बनकर उसकी भलाई करनेके त्रतके त्रती है---वे चाहे तो मनुष्य-गणनाके अधारपर बहुत-कुछ देशहित कर सकते हैं।

मनुष्य-गणनाके महत्त्व के कारण ही अगरेज़ी गवर्नमेंट हर दसवें साल, भा रहनेवाले मनुष्यों को गिनती करके उनकी वृद्धि या हासका पता लगाती है। फिर वह उनके आधारपर बड़ी बड़ी रिपोर्ट नैयार करके भिन्न भिन्न बातोंपर विचार करती है । उनको देखनेसे देशकी दशाका सच्चा हाल मालूम हो जाता है। इन रिपोर्टोंके अनेक अंशोंको सरकारी कर्मचारी जिस दृष्टिसे देखते हैं, प्रजाके प्रतिनिधि उस दृष्टिसे नहीं देखते । इन दोनों पक्षोंकी दृष्टियोंमें भिन्नता रहती है। एक उदाहरण लीजिये। कल्पना कीजिये कि १९११ की अपेक्षा १९२१ की गणनासे यह मालूम हुआ कि संयुक्त-प्रान्तोंकी आबादीमें १३ लाख आदमियोंकी कमी हो गयी। इस कमीका कारण बताते हुए सरकारी रिपोर्टका लेखक बहुत होगा तो यदि कहेगा कि अकाल