पृष्ठ:लेखाञ्जलि.djvu/१२

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लेखाज्जलि


कि दीमक या चीटोंकी एक बाबीके पास एक बड़ासा बिल है। उसीमें उन्होंने भूतोंको घुसते प्रत्यक्ष देखा है। इसपर सिंह महाशयने कहा कि जरा वह जगह हमें भी दिखाओ। यह बात उन लोगोंने मान ली और अपने साथ ले जाकर उन्होंने वह बिल सिंह महाशयको दिखा दिया। परन्तु वहाँ कोई भूत न दिखाई दिया। तब पादरी साहबके कहने से १६ आदमियों ने उस बिलको खोदना शुरू किया। कुछ देर बाद उससे दो भेड़िये निकले और बड़ी तेज़ी से भाग गये। खुदाई जारी रक्खी गई। कुछ देरतक और खोदनेपर एक मादा भेड़िया भीतर से निकली और बिलके मुंहपर आकर गुर्राने और दाँत दिखाने लगी। उसने वहाँसे हटना न चाहा; जहाँ खड़ी थी वहीं डटी खड़ी रही। लाचार होकर सिंह महाशय ने उसे अपनी बन्दूक का निशाना बनाया। फिर खुदाई शुरू की गई। जब मांद की तहतक खोदनेवाले पहुंच गये तब उन्होंने देखा कि वहां भेड़ियेके दो बच्चे और दो ही लड़कियां एक दूसरीपर पड़ी हैं। आदमियोंको देखते ही लड़कियां सजग हो गईं। एककी उम्र कोई २ और दूसरीकी कोई ८ वर्षकी थी। उन्होंने भयानक चीत्कार की और जंगली जानवरों की जैसी चेष्टा करके वहाँसे हाथ-पैरके बल भाग निकलीं। वे इस तेजीसे दौड़ी कि जो लोग वहाँ उपस्थित थे उनमेंसे कोई भी उन्हें पकड़ न सका। भागकर वे एक झाड़ीके भीतर घुस गईं। बड़ी मुश्किलों से वे किसी तरह पकड़ी गई। देखनेपर मालूम हुआ कि हाथ-परके बल ज़मीनपर चलने और मिट्टी कुरेदनेके कारण उनके नाखून नुकीले हो गये हैं।