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लेखाञ्जलि

कृषि-विषयक शिक्षाका प्रचार न होगा तबतक इस देशका दारिद्र भी दूर न होगा। कृषि और उद्योग-धन्धोंहीकी बदौलत देश समृद्ध होते हैं, इस बातको न भूलना चाहिये। इसमें सन्देह नहीं कि क़ीमती कलें खरीद करने के लिए रुपया दरकार होता है। वह यहाँके निर्धन कृषकों के पास नहीं। पर सधन और सामर्थ्यवान् जनोंके पास तो है। वही क्यों न इस कामको अपने ऊपर लेकर दूसरोंके लिए आदर्श बनें? अमेरिकामें भी सभी कृषक सब तरहकी मैशीनें नहीं रखते। वे सहयोगसे काम लेते हैं। किराये पर भी वे मेशीनें लाते हैं—उसी तरह जैसे यहाँ गन्ना पेरनेकी मैशीनें छोटे-छोटे कृषक भी किरायेपर लाते हैं। अपने देशमें पंजाबके परलोकवासी सर गङ्गारामके कामको देखिये उन्नत कृषिकी बदौलत ही उन्होंने लाखों रुपया पैदा किया ओर लाखों ख़ैरात कर गये।

[दिसम्बर १९२७]