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लेखाञ्जलि

Medal इस पुस्तकमें उन्होंने गोरोंके उन क्रूर कर्मोंका वर्णन किया है जो सिपाही-विद्रोहकी इतिहास-पुस्तकोंमें, किसी कारणसे, छूट गये हैं या छोड़ दिये गये हैं। यह बात हमें "माडर्न-रिव्यू" में प्रकाशित उस पुस्तककी एक समालोचनासे ज्ञात हुई। इस समालोचनाहीको पढ़कर भारतवासी पाठकोंके रोंगटे खड़े हो सकते हैं; मूल-पुस्तक पढ़नेपर उनके हृदयोंकी क्या दशा हो सकती है, यह तो पढ़नेहीसे ज्ञात हो सकेगा।

नये जीते हुए देशोंके निवासियोंपर विजेता जाति, कभी-कभी, भीषण अत्याचार कर बैठती है, यह तो इतिहास-प्रसिद्ध ही है। मिस्र, सीरिया, कांगो, रोफप्रान्त, बालकन-प्रदेश, कोरिया आदिके निवासियोंके साथ कैसे कैसे सलूक किये गये हैं, यह बात इतिहासप्रेमियों और समाचार-पत्रोंके पाठकोंसे छिपी नहीं। योरपके कितने ही देश पशु-बलमें बहुत समयसे प्रबल हो रहे हैं। इसीसे उन्होंने अनेक अन्य निर्बल देशोंको जीतकर उनपर अपना प्रभुत्व जमाया है। इस प्रभुत्व-जमौव्वलके कारण उन्हें बहुधा वहाँके अधिवासियोंपर ज़ोरो-जुल्म भी करना पड़ा है और अब भी करना पड़ता है। चीनमें इस समय क्या हो रहा है और बाक्सर-विद्रोहके समय क्या हुआ था, ये सब घटनाएं उसी पशुबल और आतङ्क-जमौव्वलके उदाहरण हैं। भारत भी इसका शिकार हो चुका है और किसी हदतक अब भी इसका शिकार हो रहा है।

परन्तु इस पशुबलसे बली योरपके कुछ देश, बहुत समयसे, परस्पर भी लड़ने-भिड़नेकी ताकमें चले आ रहे हैं। कारण वही प्रभु-