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लेखाञ्जलि


इस तरहका एक स्कूल कलकत्तेमें भी है। उसीके साथ एक परीक्षागार भी है। स्कूलमें उष्ण-देश-जात—श्वेत कुष्ट, काला-अज़ार, बेरीबेरी आदि—रोगोंका कारण, निदान और चिकित्सा भी सिखायी जाती है और परीक्षागारमें नयी-नयी ओषधियोंके रोगनाशक-गुणोंकी परीक्षा भी होती है। वहाँ रोगियोंको रखने और उनका इलाज करनेके लिए एक अस्पताल भी है। इस स्कूल, परीक्षागार, ओषधि-निर्म्माणशाला और अस्पतालकी संस्थापना हुए अभी कुछही समय हुआ। स्कूलमें अन्य विषयोंकी शिक्षाके सिवा सफ़ाई और तन्दुरुस्तीसे सम्बन्ध रखनेवाली बातोंकी भी शिक्षा दी जाती है, और यह शिक्षा, सुनते हैं, उस शिक्षासे किसी तरह कम नहीं, जिसकी प्राप्तिके लिए लोग स्वयं विलायत जाते हैं अथवा गवर्नमेंटके द्वारा या उसकी आज्ञासे भेजे जाते हैं।

इस स्कूलका नाम है स्कूल आव ट्रापिकल डिज़ीज़ेज़ (School of Tropical Diseases) इसमें स्वदेशी ओषधियोंकी भी परीक्षा होती है और वे तैयार भी की जाती हैं। इससे स्पष्ट है कि स्कूलका कम-से-कम यह विभाग, इस देशकी हित-दृष्टिसे, बड़े महत्त्वका है। परन्तु इसकी स्थापना या संचालनामें सहायता करनेका श्रेय न तो हमारे वैद्यराजोंको है, न हकीम-साहबोंको, और न यहाँके धनवान् लक्ष्मीपतियोंहीको। इसके संस्थापक अँगरेज़ ही हैं। वे और अंगरेज़ी गवर्नमेंट ही इसका अधिकांश ख़र्च चलाती है। इसे सर ओनार्ड राजर्सने खोला है। इसकी इमारतमें १४ १/२ लाख रुपया ख़र्च हुआ है। इसके परीक्षागारमें तीन विद्वान् खोजका काम करते