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देशी ओषधियोंकी परीक्षा और निर्माण

हैं। तदनन्तर शागनेशी, मुहीउद्दीन शेरिफ, डेविड हूपर, और डाइमक आदिने भी कई पुस्तकें इस विषयको लिखकर प्रकाशित की। इन पुस्तकोंमें आयुर्वेदिक और तिब्बी ग्रन्थोंके आधारपर जड़ी-बूटियोंक वर्णन ही नहीं, किन्तु इनमें लेखकोंने अपने अनुभवों और परीक्षाओंका भी वर्णन किया है। इसके सिवा कुछ लोगोंने ओषधीय लताओं, पौधों और बूटियोंकी परीक्षा, रसायन-शास्त्रमें निर्दिष्ट नियमोंके अनुसार भी, करके उस परीक्षाका फल प्रकट किया। अभी, हालहीमें, गवर्नमेंटकी आज्ञासे जिस कमिटीने इस विषयमें जांच-पड़ताल की थी उसने तो बड़े ही महत्त्वकी सामग्री एकत्र कर दी है। अतएव अबतक इस सम्बन्धमें जो काम हो चुका है उससे भविष्यत्‌में बहुत सहायता मिल सकती है।

तथापि देशी ओषधियोंके गुण-धर्म्मका पता लगानेके लिए अभी बहुत समय, बहुत धन और बहुत बड़े आयोजनकी आवश्यकता है। पहले तो एक ऐसे परीक्षागारकी आवश्यकता है जिसमें सब तरहके शस्त्र, यन्त्र और अन्यान्य सामग्रियाँ हों। फिर इस इतने बड़े कामके लिए और कर्मचारियोंके सिवा अनेक रसायन-शास्त्रियोंकी भी आवश्यकता है; क्योंकि ओषधियोंके गुण-धर्म्मकी परीक्षा रसायनशास्त्रके ज्ञाताओंके बिना हो ही नहीं सकती। पद-पदपर उनकी आवश्यकता पड़ती है। ओषधि-निर्माणके कामके लिए और देशोंमें जैसे कारखाने और परीक्षागार हैं वैसे ही जबतक इस देशमें न खोले जायँगे और अनेक रसायन-वेत्ता उसमें योग न देंगे तबतक हम अपने काममें कदापि सफल-मनोरथ न होंगे। अभी तो कलकत्तेके