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देहाती पञ्चायतें


दीवानीकी नालिश दायर करने का हक़ प्राप्त होनेके तीन वर्ष बाद तक ही दावे पञ्चायतोंमें किये जा सकते हैं। तीन वर्ष बीत जानेपर नालिश करनेका हक़ जाता रहता है।

नालिशें उसी हलकेकी पञ्चायतके सामने दायर की जा सकती हैं जिसमें मुद्दआइलेह, या यदि एकसे अधिक मुद्दआइलेह हों तो सब, नालिश दायर करनेके वक्त रहते हों। इस बातका कुछ विचार नहीं किया जाता कि बिनाय दावा किस जगह पैदा हुई या मुद्दई कहांपर रहता है। इसी तरह फ़ौजदारीके मुकद्दमे उस हलकेकी पञ्चायतके सामने दायर किये जाते हैं जिसमें जुर्म किया गया हो।

बहुत दफ़े ऐसा होता है कि पञ्चोंसे अनबन होने, या और किसी कारणसे, लोग पंचायतोंके सामने फ़ौजदारीके मुकद्दमे दायर न करके हाकिम तहसीलकी अदालतमें दायर कर देते हैं। ऐसी दशामें हाकिम को क़ानूनन यह अख़तियार हासिल है कि वह उस मुक़द्दमेको उसी पंचायतमें मुंतक़िल कर दे जिसमें कि उसे दाख़िल होना चाहिये था। हां, यदि वैसा न करनेके लिए कोई ख़ास वजह हो तो वह उस वजह को लिखकर अपनी ही अदालतमें उस मुक़द्दमेको सुन सकता है।

नालिशों और मुक़द्दमोंका दायर किया जाना।

पञ्चायतोंमें जो नालिशें दायर की जाती हैं उनमें नीचे लिखे अनुसार फीस देनी पड़ती है—

(क) दस रुपये तककी नालिशोंके लिए ।)

(ख) दस रुपयेसे अधिक पञ्चीस रुपये तककी नालिशोंके लिए ॥) फ़ौजदारीके हर मुक़द्दमेकी बाबत ।) देने पड़ते हैं। इसके सिवा