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लेखाञ्जलि

ख़बर करती हैं और नहीं समझतीं तो नहीं करतीं। दुर्घटनाओंके कारण हुई मौतों और ख़ुदकुशीके मामलोंतककी जाँच अब पंचायतोंहीको, मौक़े पर जाकर, करनी पड़ती है। उन्हें नक़शे मिले हुए हैं। उनकी वे ख़ानापुरी करती हैं और अपनी रिपोर्ट थानेको भेजती हैं। ऐसे मामलोंमें पुलिस सभी तहक़ीक़ातके लिए आती है जब पंचायतें उसके आनेकी ज़रूरत बताती हैं।

यहाँतक लिखी गयी बातोंसे ज्ञात होगा कि ये देहाती पंचायतें बड़े कामकी चीज़ हैं। यदि पंच ईमानदार हों और अपने कर्तव्यका पालन करें तो उनके हलके में रहनेवाले देहातियोंको बहुत लाभ पहुँच सकता है। मुंसिफी अदालतें दस-दस पन्द्रह-पन्द्रह कोस दूर हैं। दस-बीस रुपयेकी नालिशोंके लिए लोग वहाँ जाना, व्यर्थ खर्च करना और जेरबारी उठाना नहीं चाहते। पंचायतोंमें नालिश करनेसे उनका रुपया भी नहीं डूब सकता और अनेक कष्टोंसे भी उनका परित्राण हो सकता है। इसी तरह फ़ौजदारीके मामलोंमें भी पंचायतें निर्बलोंकी बहुत-कुछ रक्षा दुष्टों और हुर्मदोंसे कर सकती हैं। सज़ा पानेके डरसे ऐसे आदमियोंकी शरारतें यदि समूल ही नहीं दूर हो जातीं तो उनका बहुत-कुछ प्रतिबन्ध अवश्य ही हो जाता है।

[जनवरी १९२८]