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एक अद्भुत जीव


पदार्थका रहस्य समझनेमें अबतक उनकी बुद्धि काम नहीं दे सकी। कोई भी वैज्ञानिक इस पदार्थका विश्लेषण करके यह नहीं बता सका कि इसमें किन-किन रसों, तत्त्वों या मूल पदार्थों का योग है। इस विषयमें इसकी जटिलता देखकर बेचारे विज्ञान-विशारदोंकी पैनी बुद्धि भी चक्कर खा रही है।

जीवनके मूलरूपको जीवनकोश कहते हैं। खुर्दबीनके द्वारा देखनेसे मालूम हुआ है कि जीवनकोशमें तैलबिन्दु, श्वेत, सारबिन्दु आदि कई जटिल रासायनिक पदार्थोके कण मौजूद हैं। जीवनकोशके भीतर एक और भी क्षुद्र कोश होता है। वह सूक्ष्मातिसूक्ष्म आवरणसे परिवेष्टित रहता है। उसे अन्तःकोश (Nucleus) कहते हैं। उसके भीतर भरा हुआ पदार्थ और भी रहस्यमय होता है। वह जीवनकोशके रससे कुछ अधिक गाढ़ा होता है। अन्तःकोश के रस या धातु में जिन रासायनिक पदार्थों का मेल या मिश्रण रहता है, वे जीवनकोशके मिश्रणसे बिलकुल ही भिन्न होते हैं। अर्थात् दोनोंमें दो तरहके रस रहते हैं। दोनों की क्रियाशक्ति में भी भिन्नता होती है। विज्ञानवेत्ताओं को पता लगा है कि अन्तःकोशके बीच में कुछ तन्तु-सदृश पदार्थ भी होते हैं।

अन्तःकोशमें जितने पदार्थ होते हैं, वे सभी जीवन के आदि तत्त्व हैं। जीवनकोश, जड़ पदार्थोकी तरह, निर्जीव नहीं होते। उनमें सजीवोंकी सी चेष्टा पाई जाती है। वे भी एक प्रकारके प्राणी हैं। जलाशयोंकी तहमें, कीचड़के ऊपर, इस प्रकारके चेतन-चेष्टा-विशिष्ट एककोशी जीव ढेरके ढेर पाये जाते हैं। वे कई प्रकारके होते