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एक अद्भुत जीव


है कि इन्द्रजालके सदृश सैकड़ों आश्चर्यजनक खेल खेला ही करता है। उसके बहुरूपियेपनका यह हाल है कि उसका नन्हा सा शरीर प्रतिक्षण भेष बदलता ही रहता है। कभी-कभी वह अपनी देहसे, कितने ही स्पर्शकारक तन्तु, उँगलियोंकी तरह, बाहर निकाल देता है और फिर उन्हें ज़रा ही देरमें भीतर समेट लेता है।

श्वासक्रियाके लिये आमिवा कीदेहमें कोई अवयव या यन्त्र नहीं। परन्तु उसका श्वासोच्छ्वास-कार्य निरन्तर और अनवरत बराबर चलता रहता है। जलमें जो वायु मिली रहती है उसीसे वह अपने शरीरके सर्वांश-द्वारा आक्सिजन नामक वायु ग्रहण करता है और फिर उसी शरीर हीके द्वारा अंगारक वायुको बाहर निकाल देता है। बस इसी तरह उसका जीवन-यन्त्र सतत चलता रहता है।

आमिवा भिन्न-भिन्न आकार धारण करता हुआ अपने स्थानका परिवर्तन करता रहता है। इस परिवर्तनके समय यदि उसका कोई स्पर्श करनेवाला तन्तु या देहका अंश किसी क्षुद्र उद्भिज या प्राणिज पदार्थसे छू जाता है, तो वह अपनी कोमल देह उस पदार्थकी तरफ़ ठेल देता है। ऐसा करनेसे वह पदार्थ आमिवा की तरल देहज धातु-द्वारा पूर्णरूपसे परिवेष्टित ओर आवृत हो जाता है। अथवा यह कहना चाहिये कि वह पदार्थ उसकी देहके भीतर चला जाता है; वह उसका खाद्य बन जाता है। आमिवा इसी तरह भोजन करता है। कुछ ही देरमें वह ग्रस्त या भुक्त पदार्थ आमिवा की देहके साथ पूर्णतया न सही, आंशिक रूपसे अवश्य ही सम्मिलित हो जाता है। यदि उसका कुछ अंश आमिवाकी देहसे संश्लिष्ट नहीं हो