पृष्ठ:लेखाञ्जलि.djvu/३

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प्रकाशक का वक्तव्य

इधर कुछ समयसे हमें अपने प्रेमी ग्राहकों के सम्मुख इस माला की कोई नवीन पुस्तक रखने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ था; किन्तु आज हमें पाठकों के हाथों में हिन्दी के लब्धप्रतिष्ठ, पुराने साहित्यसेवी, ख्यातनामा “सरस्स्ती” मासिक-पत्रिकाके भूतपूर्व सम्पादक पं० महावीरप्रसादजी द्विवेदी की नवीन रचना को देते हुए बड़ी प्रसन्नता होती है। यद्यपि इसमें प्रकाशित सभी लेख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं तथापि उनकी नवीनता में कोई कमी नहीं आयी है। अधिकांश लेख ऐसे हैं जो जिस समय भी पढ़े जायेंगे, ज्ञान प्राप्त कराने के साथ-साथ मनोरंजन भी पर्याप्त रूपमें करेंगे।

वर्तमान पुस्तकमें विद्वान् लेखक ने भिन्न-भिन्न विषयों के लेखों का इस प्रकार समावेश किया है कि जिनके पठन-पाठन से भिन्न-भिन्न रुचि के पुरुषों का मनोरंजन हो और किसीका मन मी न उकतावे। इतिहास-प्रेमियों के लिए इसमें ऐतिहासिक खोज का पर्याप्त सामान है, शिक्षा-प्रमियों की आकांक्षा भी इससे भली प्रकार पूर्ण हो सकती है; जिनकी रुचि कृषि-सम्बन्धी विषयों में है और जो किसानों की भलाई में प्रयत्न-शील हैं उनको भी निराश होना नहीं पड़ता; इधर देश-प्रेमियों को भी अपनी राजनीतिक प्यास बुझानेके लिए कुछ-न-