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एक अद्भुत जीव


हैं। बड़े हो जानेपर इन बच्चोंसे भी उसी तरह पक्षविहीन स्त्रीजातीय बच्चे पैदा होते हैं। इस प्रकार इनका यह व्यापार निरन्तर जारी रहता है। किन्तु एक स्थानपर जब ये इतनी बढ़ जाती हैं कि इनके रहनेके लिये काफी जगह नहीं रहती, तब इनके गर्मसे पचयुक्त स्त्री-जातीय बच्चे पैदा होते हैं। ये बच्चे उड़कर अन्यत्र चले जाते हैं। वहीं जाकर फिर पङ्खविहीन स्त्री-जातीय बच्चे पैदा करने लगते हैं।

शरहतुके अन्तिम भागमें पक्षविहीन मक्खियोंका एक अन्तिम दल पैदा होता है। वही अंडे देता है। उसके पैदा होनेके बाद ही, कुछ दिनोंमें, एक पुरुष-जातीय दल भी पैदा होता है। पुरुषजातीय मक्खियोंका यह दल वर्षमें एक ही बार उत्पन्न होता है। स्त्री-जातीय मक्खियोंका अंतिम दल, जो अंडे देता है, इसी पुरुष-जातीय दलकी सहायतासे देता है। अंडे देनेके बाद ही इन दोनों दलों की सब मक्खियाँ मर जाती हैं। इनके अडे ही वसन्त-ऋतुके प्रारम्भमें फटते हैं और उनसे निकली हुई स्त्री-जातीय मक्खियाँ क्रमशः अपने-आप ही स्त्री-जातीय पक्षविहीन और पक्षयुक्त बच्चे पैदा करती रहती हैं।

एक प्राणितत्त्व-वेत्ताने हिसाब लगाकर देखा है कि एक-एक मक्खी अपने जीवन-समयमें, अर्थात् कई सप्ताहोंके भीतर, छः,अरब मक्खियोंके जन्मका कारण होती है। विलायतमें हक्सले (Huxley) नामक एक प्राणितत्त्व-वेत्ता हो गया है। उसका कथन है कि एक मक्खीकी दस पीढ़ियोंकी सब मक्खियां यदि इकट्ठी की जा सकें तो उन सबका वज़न इतना होगा