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लेखाञ्जलि


यहाँपर यह प्रश्न हो सकता है कि सूर्यको धक्का देनेके पहले यह संहारक नक्षत्र जब पृथ्वीको कक्षाके निकट होगा तब इसके आकर्षणसे पृथ्वीका कोई अनिष्ट हो सकता है या नहीं। गोर साहबने इसके सम्बन्धमें भी गणना की है। उससे मालूम होता है कि यदि यह नक्षत्र किसी सालकी इक्कीसवीं जूनको भूकक्षा के निकट होगा तो सूर्यके पास पहुचनेके पहले ही वह पृथ्वीको टक्कर मारकर ध्वंस कर देगा। इस दशामें यह नक्षत्र इतने जोरसे पृथ्वीको खींचेगा कि सूर्य उसके आकर्षण को किसी तरह न रोक सकेगा। यदि यह नक्षत्र तिरछी चालसे सौरजगत् में प्रवेश करेगा, तो पृथ्वीकी क्या दशा होगी, गोर साहबने इसका भी हिसाब लगाया है। आपके कथना- नुसार इस नाक्षत्रिक संहारसे सूर्य तो बच सकता है, पर हमारी पथ्वीका निरापद रहना असम्भव है। इसलिए मालूम होता है कि महाभारत और बाइबिल ने सैकड़ों वर्ष पहले पथ्वीके अन्तिम परिणामके सम्बन्ध में जो सिद्धान्त स्थिर किये हैं वे एक-दम असम्भव नहीं।

ज्योतिष शास्त्रकी उन्नतिके साथ-साथ नक्षत्रोंका पर्यवेक्षण करने के उपयोगी बहुतसे यन्त्रोंका आविष्कार हो गया है। इसलिए अब यदि किसी नये नक्षत्र का आविर्भाव होता है तो वह घटना तुरन्त जान ली जाती है। सौरजगत्के गन्तव्य स्थान में, बहुत अनुसन्धान करने पर भी, किसी नये नक्षत्र का पता नहीं लगा। इसलिए गोर साहब के कथनानुसार यह प्रकट है कि अभी बहुत समयतक पृथ्वीके ध्वंस होनेकी कोई सम्भावना नहीं। हां, यदि कभी पूर्वोक्त प्रकारका कोई नक्षत्र देख पड़े,को उसके सोलहवें वर्ष पथ्वीका ध्वंस निश्चय समझना चाहिए।