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६—स्वयंवह-यंत्र

नई चालकी घड़ियोंके प्रचारसे ठीक समय जानने में लोगोंको बहुत सुभीता हो गया है। ये घड़ियाँ पहले-पहल योरपमें बनी थीं और वहों से हिन्दुस्तानमें पाई। इनका प्रचार हुए सौ डेढ़ सौ वर्ष से अधिक नहीं हुए। परन्तु उसके पहले, अथवा प्राचीन कालमें भी, निश्चित समय जाननेका साधन लोगोंके पास अवश्य था। जिस यंत्रके द्वारा प्राचीन काल के लोग समय निश्चित कर सकते थे उसका नाम स्वयंवह-यंत्र था। यह यंत्र कई प्रकारका होता था। केवल भारतवर्ष हीमें नहीं, किन्तु अन्यान्य देशोंमें भी लोग इसको काममें लाते थे। सुनते हैं कि कहीं-कहीं अब भी समय देखनेका काम इसी यन्त्रसे लिया जाता है।

कई वर्ष हुए, राजशाहीमें, बङ्ग-साहित्य परिषद्का वार्षिक अधिवेशन हुआ था। उसमें अध्यापक योगेशचन्द्रराय ने स्वयंवह-यंत्रोंके विषयमें एक लेख पढ़ा था। उस लेखमें अध्यापक महाशय ने कितनी ही उपयोगी और ज्ञातव्य बातें कही है। इसलिए उसका भावार्थ आज हम पाठकोंको सुनाते हैं।