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लेखाञ्जलि

समूहमें शक्तिका सञ्चार कर दिया। उस शक्तिके बलसे परमाणुपिण्डमें गति उत्पन्न हो गई। पर यह शक्ति कैसी थी, इसकी व्याख्या करनेमें विज्ञान अबतक समर्थ नहीं हुआ। इसीके द्वारा गति उत्पन्न होती है। अतएव इस शक्तिको हम गतिका "कारण" अवश्य कह सकते हैं। इस शक्तिके प्रभावसे परमाणुओंमें गतिका सञ्चार होनेपर वे परमाणु कुण्डलाकार होकर, आकाशमें, चक्कर काटने लगे। जैसे परमाणु जड़-जगत्‌की आदिम अवस्थाकी तसवीर या प्रतिकृति है, वैसे ही कुण्डलाकार गति भी जड़-पदार्थों की गतिकी शैशवावस्था है। जड़-जगत्‌में गतिका पहला काम केवल घूमने—केवल चक्कर लगाने—की चेष्टामात्र है, और कुछ नहीं। एक परमाणुके ऊपर दूसरा परमाणु रखकर, और दूसरेपर तीसरा रखकर ही, इस विशाल विश्वकी सृष्टि हुई है। यह ब्रह्माण्ड परमाणुओंहीके एकत्रीकरणका फल है। इस काममें कितने करोड़-कितने अरब-खरब वर्ष-बीत चुके हैं, यह जान लेना कठिन ही नहीं, नितान्त असम्भव भी है। सृष्टिके आदि कारण परमाणुओंने अभीतक अपनी पुरानी कुण्डलाकार गतिका परित्याग नहीं किया। सृष्टि-रचनाके व्यापारमेंजगत्‌को प्रकट करनेके उद्योगमें यह कुण्डलाकार गति ही विश्वविधाताका पहला काम है। निरुद्यम और निश्चेष्ट जड़-जगत् में शक्तिका यही प्राथमिक आविर्भाव है।

कुण्डलाकार गतिमें यह नहीं भासित होता कि गतिको प्राप्त वस्तु एक जगहसे दूसरी जगह जा रही है। और, एक प्रकारसे वह जाता भी नहीं। साँपकी पूँछ यदि उसके मुँहमें डाल दी जाय तो वह