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सौर जगत्‌की उत्पत्ति

कर, उससे टकराया है और उस टकरानेकी रगड़से उत्पन्न हुई गर्मीके कारण उस उल्कासमूहको उसने भस्म कर दिया है। उस नवीन ताराकी पहली तेज़ रोशनीका यही कारण हो सकता है। इस समय वही बुझा हुआ सूर्य्य सम्पूर्ण गतिसे प्रज्वलित होकर एक नवीन अथवा पुनरुज्जीवित सूर्य्यके रूपमें प्रकाशित हुआ है। उसीको हम एक नवीन ताराके रूपमें देखते हैं।

यह अनुमान यदि सत्य हो तो इससे यह प्रमाणित होता है कि सूर्य्यके एक बार बुझकर निश्चेष्ट जड़-पिण्ड बन जानेहीसे उसके अस्तित्वका अन्त नहीं होता। बुझा हुआ सूर्य्य जीवित होकर फिर प्रकट हो सकता है और उसके द्वारा नवीन सौर जगत्‌की सृष्टि होनेकी सम्भावना बनी रहती है। यह पुनरुज्ज्वलित सूर्य एक-दम चाहे नीहारिका न हो जाय, पर भाफ या तारल्यभावको अवश्य धारण करेगा। तब इससे ग्रहों और उपग्रहोंकी नई सृष्टि क्रमशः हो सकती है। इसी तरह इस जगत्‌का जीर्णोद्धार प्रायः हुआ करता है और यह जीर्णोद्धार विधाताकी मङ्गलमयी अनुकम्पाहीका परिचायक जान पड़ता है—इसमें कोई सन्देह नहीं।

[मार्च १९२७]