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लेखाञ्जलि

नहीं। कहीं बादल घिर आये तो चन्द्रिका छिप जाती है और घूमनेवालोंको रास्ता भूल जानेका बड़ा डर रहता है। चन्द्रके आस-पास बहुधा परिधि-मण्डल और कहीं-कहीं इन्द्रधनुष भी देख पड़ते हैं। कभी-कभी एक नहीं अनेक—सात-सात, आठ-आठ—झूठे चन्द्रमा भी दिखाई दे जाते हैं। चन्द्रमाकी किरणें बर्फ़ पर ठेढ़ी होकर पड़नेसे ये अलीक चन्द्र दिखाई पड़ते हैं।

ग्रीनलेंडके उत्तरी किनारेकी सरदी और गरमीसे ही उत्तरी ध्रुव की सरदी और गरमीका अन्दाज़ा किया जाता है। वहाँ कम-से-कम दिसम्बरमें शून्यके नीचे ५३ अंशतक सरदी और ज़ियादहसे ज़ियादह जूनमें शून्यके ऊपर ५२ अंशत गरमी पड़ती है। यह गरमी हमारे देशमें कड़ाकेके जाड़ोंके दिनोंकी-सी होती है। जाड़ोंमें यात्रियों को विशेष कष्ट नहीं होता परन्तु सरदीमें रहनेके कारण गरमियोंमें उन्हें ज़रा-सी भी गरमी बरदाश्त नहीं होती।

ध्रुव-प्रदेशमें वर्षा नहीं होती। न कभी बादल गरजते हैं और न कभी बिजली ही चमकती है। बर्फके तूफ़ान अलबत्ते खूब आया करते हैं।

इस प्रदेशमें कोई भी खाद्य-पदार्थ नहीं होता। जो लोग वहाँ जाते हैं वे चाय, जमा हुआ दूध, मांस, बिसकुट और अन्य पदार्थ सब अपने साथ ले जाते हैं। शराब पीनेसे वहाँ बड़ी हानि पहुँचती है। वहाँ हर मनुष्यको प्रतिदिन कोई आध सेर मांस, आध सेर बिसकुट, आध पाव जमा हुआ दूध और एक तोले चाय दरकार होती है। कुत्तों के लिए मांस और आग जलानेके लिए तेलकी भी ज़रूरत होती है।