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लेखाञ्जलि

विद्वानोंमें मतभेद है। सेनार्ट साहब कहते हैं कि २५६ से तात्पर्य्य २५६ धर्म्म-प्रचारकोंसे है, जिन्हें अशोकने अन्य देशोंको भेजा था। परन्तु यह अर्थ निरा कल्पित, भ्रमात्मक, अप्रासङ्गिक और अयौक्तिक है। असलमें यह तारीख, सन् या साल है। इसका अर्थ यह है कि बुद्धके निवाणके २५६ वर्ष बीतनेपर यह अभिलेख खोदा गया था। वूलर, मैक्समूलर, कनिंहम, कर्न, पिशल फ्लीट, रीज़ डेविड्स और विन्सेंट स्मिथ आदि विद्वानोंने भी इसी अर्थ या तात्पर्य्यको ठीक माना है। इस अर्थ की पुष्टि एक और अभिलेखसे भी होती है। रूपनाथवाले शिलालेखमें लिखा है कि—"व्यूथेन सावने कते २५६ सत विवास ता" इसका भावार्थ यह है कि शिक्षकको संसारसे बिदा हुए २५६ वर्ष बीते। यहाँपर शिक्षकसे तात्पर्य्य भगवान् गौतम बुद्धहीसे है।

पूर्वोक्त अभिलेख खोदनेकी आज्ञा अशोकने उस समय दी थी जिस समय वे मृत्युशय्या पर पड़े थे। परन्तु ये अभिलेख अशोकके मरनेके बाद खोदे गये थे। इसी लिए उनके अन्तमें लिखा है कि वे परलोकवासी (अशोक) के दिये हुए हैं। मालूम होता है कि मरनेके कुछ समय पहलेहीसे अशोक सुवर्णगिरिमें रहते थे। मृत्युके समय उन्होंने अपनी अन्तिम आज्ञाएं वहाँके राजकुमार और शासनकर्त्ताको सुना दी होंगी और उन्हें शिलाखण्डोंपर खुदवानेके लिए भी आदेश दिया होगा। इसी आदेशके अनुसार उन्होंने कार्य्य किया। यह बात खुद अभिलेखोंसे स्पष्ट मालूम होती है।

पूर्वनिर्दिष्ट अभिलेखमें लिखा है कि अशोक साढ़े बत्तीस वर्ष