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आगरेकी शाही इमारतें

तरा लाल पत्थरका है; वह ज़मीनसे कोई ३ फुट ऊंचा है। यह इमारत लगभग ७० फुट मुरब्बा है। बाहरसे इसमें सङ्गमरमर जड़ा हुआ है। इसके हर कोनेपर सङ्गमरमरके अठकोने मीनार हैं। इसके बीच में एक बड़ा मण्डप है। चारों तरफ, हर कोनेमें, एक-एक छोटा कमरा है। मण्डपमें, सब तरफ, मेहराब हैं। दक्षिणकी तरफवाली मेहराब खुली है। और सब संगमरमर को जालियोंसे बन्द हैं। दो मुख्य क़बरोंके सिवा, किनारेके पांच कमरोंमें भी एक-एक कबर है। इस इमारतमें पत्थरका, और रङ्गका भी, काम बहुत अच्छा है। परन्तु सङ्गमरमरके टुकड़ों के निकाल लिये जानेसे इसकी सुन्दरतामें कुछ बाधा आ गयी है। कहीं-कहीं रङ्ग भी ख़राब हो गया है। इसके भीतर एक लेख, १६१७ ईसवीका है। परन्तु जिस समय यह मक़बरा बना था उस समयका यह लेख नहीं जान पड़ता।

किलेके भीतरकी इमारतें।

आगरेका क़िला त्रिभुजाकार है। वह यमुनाके ठीक किनारे है। उसकी दीवारकी परिधि डेढ़ मीलके लगभग है। दीवारकी ऊंचाई ७० फुट है। दीवार लाल पत्थरकी है। उसके सब तरफ़ एक गहरा खन्दक है। उसके प्रधान फाटक, अर्थात् देहली दरवाज़े के सामने खंदकपर एक पुल बना हुआ है। उसे इच्छानुसार लगा या हटा सकते हैं। देहली दरवाज़े के दाहिनी तरफ, एक जगहपर, १६०५ ईसवीका एक लेख है। एक बार अकबरने खानदेशपर चढ़ाई की थी। उस चढ़ाईका और उससे आगरेको लौट आनेका वर्णन इस लेखमें है। अकबरहीने, १५६७ ईसवीमें, इस किलेको बनवाया था। पर उसके