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आगरेकी शाही इमारतें

मोती-मसजिदके पास ही सर कालविनकी समाधि है।

दीवानेआम एक खुली हुई इमारत है। वह लाल पत्थरकी है। चौकोर खम्भोंकी चार क़तारोंपर मिहराबें हैं। उन्हींपर उसकी छत ठहरी है। इसका दूसरा नाम महले चेहल सितून, अर्थात् चालीस खम्भोंका महल, है। इसीके पास बादशाहकी बैठक या कचहरी थी; जहाँपर बैठकर वह, साधारण रीतिपर, राज्यके काग़ज़-पत्र देखता था, न्याय करता था, और जिससे जो कुछ कहना होता था कहता था। दीवान-आमहीमें अमीर-उमरा रोज़ आकर हाज़िरी देते थे।

नगीना मसजिद एक छोटी-सी मसजिद है। परन्तु देखनेमें बड़ी सुन्दर है। वह बिलकुल सफ़ेद पत्थर की है। शाही महलोंकी यह ख़ास मसजिद थी। बेगमें भी इसमें आया करती थीं। इसमेंसे होकर एक परदेदार रास्ता दीवाने-आम की छतपर गया है। छतपर जाने के लिए सीढ़ियाँ हैं। वहाँसे वह रास्ता हरम, अर्थात अन्तःपुर, तक गया है। इस मसजिदके तीन भाग हैं। इसकी छत छोटे छोटे खम्भोंकी तीन क़तारोंपर ठइरी है। खम्मे चौकोर और सादे हैं। छतपर तीन गुम्बज़ हैं।

मच्छी-भवन न मक १५० फुट*२०० फुटके प्राङ्गणमें जहाँगीरका सिंहासन रक्खा है। वह काले पत्थरका है। वह १० फुट ७ इंच लम्बा और ९ फुट १० इंच चौड़ा है। इस सिंहासनके किनारे एक लेख है। वह १६०२ ईसवीका है। अर्थात् वह अकबरकी मृत्युके तीन वर्ष पहलेका है। उसमें सुलतान सलीम, अर्थात् जहाँगीर, की