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वरदान
३८
 


आने लगेगा। अब मेरे ही घर में देखो,पहिले इतना श्रादर करते थे कि क्या बताऊँ। प्रतिक्षण नौकरों की भांति हाथ बांधे खड़े रहते थे।पखा झलने को तैयार,हाथ से कौर खिलाने को तैयार,यहाँ तक कि (मुसकुरा-कर) पाव टावने में भी सङ्कोच न था। बात मेरे मुख से निकली नहीं कि पूरी हुई। मैं उस समय अबोध थी। पुरुषों के कपट-व्यवहार क्या जानूँ? पट्टी में श्रा गयी। सेवती झूठ न मानना,उसी दिन से उनकी आँखें फिर गयीं। लगे सैर-मपाटे करने। एक दिन रूठकर चल दिये। गजरा गले में डाले,इत्र लगाये श्राधी रात को घर आये। जानते थे कि श्रान हाथ बांध-कर खड़ी होगी,मैंने लम्बी तानी तो रात-भर करवट न ली। दूसरे दिन भी न बोली। अत में महाशय सीधे हुए,पैरों पर गिरे,गिड़गिड़ाये। तब से मैंने इस बात की गांठ बांध ली है कि पुरुषों को प्रेम कमी न जताओ।

सेवती-जीना को मैंने देखा है। भैया के विवाह में आये थे। बड़े हँसमुख मनुष्य हैं।

कमला-पार्वती उन दिनों पेट में थी,इसी से मैं न पा सकी थी। यहां से गये,तो लगे तुम्हारी प्रशसा करने। तुम कभी पान देने गयी थीं? कहते थे कि मैंने हाथ थामकर बैठा लिया, खूब बातें हुई।

सेवती-झूठे हैं,लबारिये हैं। वात यह हुई कि गुलबिया और जमुनी दोनों किमी कार्य से बाहर गयी थीं। मां ने कहा,वे खाकर गये हैं,पान वना के दे या। मैं पान लेकर गयी,चारपाई पर लेटे थे,मुझे देखते ही उठ बैठे। मैंने पान देने को हाथ बढाया, तो श्राप कलाई पकड़कर कहने लगे कि एक बात सुन लो एक बात सुन लो,पर मैं हाथ छुड़ाकर भागी।

कमला-निकली न झूठी बात। वही तो मैं भी फहूँ कि अभी ग्यारह-बारह वर्ष की छोकरी,उसने इनसे क्या वाते की होंगी ? परन्तु नहीं,अपना ही हट किये नाय। पुरुप बड़े प्रलापी होते हैं । मैंने यह कहा,मैंने वह कहा। मेरा तो इन बातों से हृदय सुलगता है। न जाने उन्हे अपने ऊपर झूटा टोप लगाने में क्या स्वाद मिलता है। मनुष्य को बुरा-भला